
वासुबानढु
Vasubandhu
(4th/5th century Gandharan Buddhist monk)
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वसुबंधु: एक विस्तृत विवरण (हिंदी)
वसुबंधु (चौथी से पाँचवीं शताब्दी ईस्वी) गांधार क्षेत्र के एक अत्यंत प्रभावशाली बौद्ध भिक्षु और विद्वान थे। वे एक महान दार्शनिक थे जिन्होंने सर्वास्तिवाद और सौत्रांतिक सम्प्रदायों के दृष्टिकोण से अभिधर्म पर टीकाएँ लिखीं। अपने सौतेले भाई असंग के साथ, वे महायान बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए और योगाचार सम्प्रदाय के मुख्य संस्थापकों में से एक बने।
प्रमुख रचनाएँ और योगदान:
- अभिधर्मकोशकारिका: वसुबंधु की यह रचना, "अभिधर्म के खजाने पर टीका", तिब्बती और पूर्वी एशियाई बौद्ध धर्म में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है। यह गैर-महायान अभिधर्म दर्शन के लिए प्रमुख स्रोत मानी जाती है।
- योगाचार दर्शन: उनके दार्शनिक छंदों ने "केवल विज्ञान" (विज्ञानवाद) के भारतीय योगाचार तत्वमीमांसा के लिए मानक स्थापित किए। इस दर्शन को "ज्ञानमीमांसीय आदर्शवाद", घटना-विज्ञान और इम्मानुएल कांट के पारलौकिक आदर्शवाद के करीब माना जाता है।
- अन्य रचनाएँ: उपरोक्त के अलावा, उन्होंने कई टीकाएँ, तर्कशास्त्र, तर्क-वितर्क और भक्ति कविता पर रचनाएँ भी लिखीं।
प्रभाव और विरासत:
- वसुबंधु भारतीय बौद्ध दार्शनिक परंपरा के सबसे प्रभावशाली विचारकों में से एक हैं।
- नालंदा विश्वविद्यालय के साथ उनके जुड़ाव के कारण, वसुबंधु और असंग को "सत्रह नालंदा आचार्यों" में गिना जाता है।
- जोदो शिंशु सम्प्रदाय में उन्हें दूसरा कुलपति माना जाता है, जबकि चान बौद्ध धर्म में उन्हें 21वें कुलपति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
संक्षेप में: वसुबंधु एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे जिन्होंने अपने दार्शनिक विचारों, टीकाओं और शिक्षाओं से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया और आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ आज भी अध्ययन और मनन का विषय हैं, जो उनके स्थायी प्रभाव का प्रमाण हैं।
Vasubandhu was an influential Buddhist monk and scholar from Gandhara. He was a philosopher who wrote commentary on the Abhidharma, from the perspectives of the Sarvastivada and Sautrāntika schools. After his conversion to Mahayana Buddhism, along with his half-brother, Asanga, he was also one of the main founders of the Yogacara school.