
झियी
Zhiyi
(Chinese Buddhist founder of Tiantai)
Summary
ज़ि यी: तियानताई बौद्ध धर्म के चौथे कुलपति
ज़ि यी (चीनी: 智顗, पिनयिन: Zhìyǐ, वेड-गाइल्स: Chih-i, जापानी उच्चारण: Chigi, कोरियाई: 지의) (५३८ - ५९७ ईस्वी) को चेन डे'अन (陳德安) के नाम से भी जाना जाता है। वे चीन में तियानताई बौद्ध धर्म परंपरा के चौथे कुलपति थे। उनका मानक शीर्षक श्रमण ज़ि यी (沙門智顗) था, जो उन्हें भारतीय तपस्वी परंपरा से जोड़ता है।
ज़ि यी को चीनी बौद्ध धर्म के इतिहास में बौद्ध शिक्षाओं का एक पूर्ण, आलोचनात्मक और व्यवस्थित वर्गीकरण तैयार करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। उन्हें भारतीय परंपरा से एक महत्वपूर्ण विराम लेने और एक स्वदेशी चीनी प्रणाली बनाने वाले पहले प्रमुख व्यक्ति के रूप में भी माना जाता है।
ज़ि यी का महत्व
डेविड डब्ल्यू. चैपल के अनुसार, ज़ि यी को "विश्व इतिहास में धार्मिक विचार और व्यवहार के महान व्यवस्थितकर्ताओं में से एक के रूप में थॉमस एक्विनास और अल-ग़ज़ाली के साथ स्थान दिया गया है।"
ज़ि यी की शिक्षाओं का सारांश
- ज़ि यी ने लोटस सूत्र को बौद्ध धर्म का सर्वोच्च सूत्र माना और उसे समझने के लिए एक व्यापक और गहन रूपरेखा विकसित की।
- उन्होंने पंचकाल (पाँच अवधियाँ) और चार प्रकार के धर्मोपदेश की अवधारणा प्रस्तुत की, जो बुद्ध की शिक्षाओं को उनके ऐतिहासिक संदर्भ में समझने में मदद करती है।
- उन्होंने तीन हज़ार लोकों का एक क्षण में समावेश (一念三千) नामक एक सिद्धांत विकसित किया, जो बताता है कि सभी घटनाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हैं और एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
- ज़ि यी ने ध्यान को आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक माना और विभिन्न प्रकार के ध्यान अभ्यासों का वर्णन किया।
ज़ि यी के लेखन और शिक्षाओं ने पूर्वी एशियाई बौद्ध धर्म के विकास पर गहरा प्रभाव डाला, खासकर चीन, कोरिया और जापान में।