
सिद्धचक्र
Siddhachakra
(Mystical diagram used for worship in Jainism)
Summary
सिद्धचक्र: जैन धर्म का एक पवित्र प्रतीक
सिद्धचक्र, जैन धर्म में पूजा के लिए उपयोग किया जाने वाला एक पवित्र यंत्र या मंडल है। इसे श्वेतांबर परंपरा में नवपद और दिगंबर परंपरा में नवदेवता के नाम से भी जाना जाता है।
श्वेतांबर परंपरा में, सिद्धचक्र को णमोकार मंत्र के साथ जोड़ा जाता है। यह राजा श्रीपाल और उनकी पत्नी मयणासुंदरी की कथा से जुड़ा है।
यह एक कलश के रूप में चित्रित किया जाता है जिसके केंद्र में एक खिले हुए कमल होता है जो नवपद का प्रतिनिधित्व करता है। इसके चारों ओर पंखुड़ियों पर रक्षक देवताओं को दर्शाया गया है।
नवपद, जैन धर्म के नौ महत्वपूर्ण तत्वों का प्रतीक है:
- अरिहंत: पूर्ण ज्ञानी और मुक्त आत्माएँ
- सिद्ध: मोक्ष प्राप्त आत्माएँ
- आचार्य: जैन धर्म के प्रमुख शिक्षक
- उपाध्याय: धार्मिक ग्रंथों के ज्ञाता
- साधु: जैन भिक्षु
- सम्यग्दर्शन: सही विश्वास
- सम्यग्ज्ञान: सही ज्ञान
- सम्यक्चारित्र: सही आचरण
- तप: आध्यात्मिक अनुशासन
यह माना जाता है कि सिद्धचक्र की पूजा करने से व्यक्ति को इन नौ तत्वों का ज्ञान प्राप्त होता है और वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।
सिद्धचक्र का उपयोग कुछ जैन अनुष्ठानों में भी किया जाता है।