
सरबलो ग्रन्थ
Sarbloh Granth
(Tertiary scripture of Sikhism)
Summary
सरबलोह ग्रंथ: एक विस्तृत विवरण
सरबलोह ग्रंथ या सरबलोह ग्रंथ (पंजाबी: ਸਰਬਲੋਹ ਗ੍ਰੰਥ), जिसे मंगलाचरण पुराण या श्री मंगलाचरण जी भी कहा जाता है, एक बहुत बड़ा ग्रंथ है, जिसमें 6,500 से ज़्यादा काव्य श्लोक हैं। परंपरागत रूप से, इसे दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लिखा गया माना जाता है। लेकिन विद्वानों का मानना है कि यह ग्रंथ गुरु की मृत्यु के बाद किसी अज्ञात कवि द्वारा लिखा गया था। यह ग्रंथ मुख्य रूप से निहंग संप्रदाय द्वारा सम्मानित किया जाता है।
सरबलोह ग्रंथ की कहानी और महत्व को समझने के लिए, इसे अलग-अलग हिस्सों में समझना ज़रूरी है:
- नाम का अर्थ: "सरबलोह" का अर्थ है "शुद्ध लोहा", और "ग्रंथ" का अर्थ है "शास्त्र"। इस प्रकार, सरबलोह ग्रंथ का अर्थ होता है "शुद्ध लोहे का शास्त्र"। यह नाम ग्रंथ की शक्ति और स्थायित्व का प्रतीक है, जैसा कि लोहा होता है।
- साहित्यिक महत्व: यह ग्रंथ पंजाबी भाषा में लिखा गया है, और इसमें गुरु गोबिंद सिंह के जीवन, शिक्षाओं और युद्धों के बारे में लिखा गया है। ग्रंथ में कई काव्य श्लोक, भजन और कहानियाँ हैं जो सिख धर्म की नींव पर आधारित हैं।
- निहंग संप्रदाय का सम्मान: निहंग संप्रदाय सिख धर्म का एक प्रमुख संप्रदाय है, जो गुरु गोबिंद सिंह के समय से ही मौजूद है। यह संप्रदाय सरबलोह ग्रंथ को बहुत सम्मानित करता है, और इसे अपने धार्मिक ग्रंथों में से एक मानता है।
- विवाद: हालांकि, विद्वानों का मानना है कि सरबलोह ग्रंथ वास्तव में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा नहीं लिखा गया था। वे इस ग्रंथ में इस्तेमाल की गई भाषा और शैली को देखते हुए यह तर्क देते हैं कि यह गुरु की मृत्यु के बाद किसी अज्ञात कवि द्वारा लिखा गया होगा।
सरबलोह ग्रंथ के बारे में बहस जारी है, लेकिन यह निश्चित है कि यह ग्रंथ सिख धर्म और इतिहास के बारे में जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह ग्रंथ सिखों के लिए एक धार्मिक और साहित्यिक महत्व रखता है, खासकर निहंग संप्रदाय के लिए।