
दिगंबर
Digambara
(One of the two major schools of Jainism)
Summary
दिगंबर जैन धर्म
दिगंबर जैन धर्म, जैन धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है, दूसरी श्वेतांबर है। "दिगंबर" संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "आकाश को वस्त्र मानने वाला"। यह नाम उनकी साधु परंपरा को दर्शाता है, जिसमें वे कोई भी वस्त्र धारण नहीं करते हैं और आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं।
दिगंबर और श्वेतांबर परंपराओं में ऐतिहासिक मतभेद रहे हैं, जिनमें उनके पहनावे, मंदिरों और मूर्तिकला, महिला साध्वियों के प्रति दृष्टिकोण, उनकी किंवदंतियाँ और वे ग्रंथ शामिल हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण मानते हैं।
दिगंबर परंपरा की मुख्य विशेषताएं:
- दिगंबर साधु: दिगंबर साधु अनासक्ति और किसी भी भौतिक वस्तु के प्रति मोह का त्याग करने के सिद्धांत का पालन करते हैं। वे पूर्ण नग्न रहते हैं और आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं।
- पिच्छी: वे अपने साथ एक "पिच्छी" रखते हैं, जो मोर पंखों से बना एक झाड़ू होता है। इसका उपयोग वे अपने रास्ते में आने वाले कीड़ों को हटाने के लिए करते हैं ताकि वे उन्हें कुचलकर न मार दें।
- दिगंबर साहित्य: दिगंबर साहित्य का इतिहास पहली सहस्राब्दी तक पाया जाता है। उनका सबसे पुराना जीवित पवित्र ग्रंथ दूसरी शताब्दी का "षट्खंडागम" है, जिसे धरसेन द्वारा रचित माना जाता है।
- प्रमुख विद्वान: दिगंबर परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण विद्वान-साधुओं में से एक कुंदकुंद थे, जिन्होंने जैन दर्शन पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
वर्तमान स्थिति:
आज, दिगंबर जैन समुदाय मुख्य रूप से उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं, जैसे कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, दक्षिण महाराष्ट्र के कुछ हिस्से और कर्नाटक। भारत में सभी जैनियों में से पाँचवे से भी कम लोग दिगंबर परंपरा के अनुयायी हैं।
संक्षेप में, दिगंबर जैन धर्म, जैन धर्म की एक महत्वपूर्ण शाखा है जो अपने कठोर आचरण और अहिंसा के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है।