Śvetāmbara

श्वेताम्बर

Śvetāmbara

(One of the two major schools of Jainism)

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श्वेताम्बर जैन धर्म

श्वेताम्बर जैन धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है, दूसरी दिगंबर है। संस्कृत में श्वेताम्बर का अर्थ है "श्वेत वस्त्रधारी", जो उनके साधुओं द्वारा सफेद वस्त्र धारण करने की परंपरा को दर्शाता है। यह परंपरा उन्हें दिगंबर या "दिगंबर" जैनियों से अलग करती है, जिनके साधु नग्न रहते हैं। श्वेताम्बर मानते हैं कि साधुओं के लिए नग्न रहना अनिवार्य नहीं है।

श्वेताम्बर और दिगंबर परंपराओं में ऐतिहासिक रूप से कई मतभेद रहे हैं, जिनमें उनके पहनावे, उनके मंदिर और मूर्तिकला, जैन साध्वियों के प्रति उनका दृष्टिकोण, उनकी किंवदंतियाँ और वे ग्रंथ शामिल हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण मानते हैं।

आइए इन अंतरों को विस्तार से समझें:

  • पोशाक: यह सबसे स्पष्ट अंतर है। श्वेताम्बर साधु सफेद वस्त्र धारण करते हैं जबकि दिगंबर साधु नग्न रहते हैं। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार, साधुओं को भी अपनी पवित्रता बनाए रखने के लिए कम से कम दो वस्त्र (एक अंगवस्त्र और एक चादर) धारण करने चाहिए।
  • मूर्तिकला: श्वेताम्बर मंदिरों में तीर्थंकरों की मूर्तियाँ वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होती हैं, जबकि दिगंबर परंपरा में मूर्तियाँ पूर्णतः नग्न होती हैं।
  • साध्वियाँ: श्वेताम्बर परंपरा में महिलाओं को भी साध्वी बनने की अनुमति है, जबकि दिगंबर परंपरा साध्वी प्रथा को मान्यता नहीं देती है।
  • ग्रंथ: दोनों शाखाएँ अलग-अलग धार्मिक ग्रंथों को प्रामाणिक मानती हैं। श्वेताम्बर "आगम" नामक ग्रंथों को स्वीकार करते हैं, जबकि दिगंबर इन ग्रंथों को अपूर्ण मानते हैं।

श्वेताम्बर जैन समुदाय वर्तमान में मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। हिंदू और जैन अध्ययन के एक विद्वान जेफरी डी. लॉन्ग के अनुसार, भारत में लगभग चार-पांचवें जैन श्वेताम्बर हैं।

संक्षेप में, श्वेताम्बर जैन धर्म जैन धर्म की एक प्रमुख शाखा है जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। यह शाखा अपनी विशिष्ट मान्यताओं और प्रथाओं के कारण दिगंबर परंपरा से अलग है।


The Śvetāmbara is one of the two main branches of Jainism, the other being the Digambara. Śvetāmbara in Sanskrit means "white-clad", and refers to its ascetics' practice of wearing white clothes, which sets it apart from the Digambara or "sky-clad" Jains whose ascetic practitioners go nude. Śvetāmbaras do not believe that ascetics must practice nudity.



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