
भवचक्र
Bhavacakra
(A symbolic representation of cyclic existence)
Summary
भवचक्र: जीवन का पहिया - एक विस्तृत विवरण
"भवचक्र" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "जीवन का पहिया" | यह तिब्बती बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जो संसार यानी जीवन-मृत्यु के चक्र को दर्शाता है। यह पहिया तिब्बती बौद्ध मंदिरों और विहारों की बाहरी दीवारों पर चित्रित मिलता है ताकि आम लोग बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को आसानी से समझ सकें।
यह प्रतीक भारतीय बौद्ध धर्म और तिब्बती बौद्ध धर्म दोनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
भवचक्र की संरचना और प्रतीकवाद:
यह पहिया विभिन्न भागों में विभाजित होता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं और पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाते हैं:
पहिये का केंद्र: यहाँ तीन जानवर होते हैं - एक सुअर, एक साँप और एक मुर्गा। ये तीन जानवर मनुष्य के तीन मुख्य दोषों का प्रतीक हैं:
- सुअर: अज्ञानता (मोह)
- साँप: राग या लालच (लोभ)
- मुर्गा: द्वेष या घृणा (द्वेष)
पहिये के छह खंड: यह छह खंड या "गति" जीवन के छह लोकों को दर्शाते हैं जहाँ एक आत्मा पुनर्जन्म ले सकती है:
- देवलोक: देवताओं का लोक - सुख और आनंद का स्थान
- असुरलोक: असुरों का लोक - ईर्ष्या और क्रोध का स्थान
- मनुष्य लोक: मनुष्यों का लोक - सुख और दुःख दोनों का मिश्रण
- पशु लोक: पशुओं का लोक - अज्ञानता और कष्ट का स्थान
- प्रेतलोक: भूखे प्रेतों का लोक - अतृप्त इच्छाओं और पीड़ा का स्थान
- नरकलोक: नरक का लोक - अत्यंत पीड़ा और यातना का स्थान
पहिये का रिम: यह रिम बारह "निदानों" को दर्शाता है जो जीवन-मृत्यु के चक्र को निरंतर चलाते रहते हैं। इनमें अज्ञानता, कर्म, चेतना, नाम-रूप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भव, जन्म और जरा-मरण शामिल हैं।
यमराज: पहिये को यमराज पकड़े हुए हैं जो मृत्यु के देवता हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि मृत्यु जीवन का एक अभिन्न अंग है।
बुद्ध: कभी-कभी पहिये के ऊपर बुद्ध की आकृति भी दिखाई जाती है जो मुक्ति या निर्वाण का मार्ग दिखाती है।
भवचक्र हमें याद दिलाता है कि हम सभी जीवन-मृत्यु के चक्र में फंसे हैं। यह हमें अपने कर्मों के प्रति जागरूक होने और मुक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।