Bahubali

बाहुबली

Bahubali

(Legendary figure in Jainism)

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बाहुबली: जैन धर्म के एक महान तपस्वी

बाहुबली ( संस्कृत: बाहु + बली, अर्थात "मजबूत भुजाओं वाला") जैन धर्म में एक पूजनीय व्यक्ति थे। वे ऋषभनाथ (जैन धर्म के पहले तीर्थंकर) के पुत्र और चक्रवर्ती सम्राट भरत के बड़े भाई थे।

१२ वर्ष की कठोर तपस्या:

बाहुबली अपनी कठोर तपस्या के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने १२ वर्षों तक खड़े होकर ध्यान किया, इस दौरान उनके पैरों के चारों ओर लताएं उग आईं। इस ध्यान मुद्रा को कायോत्सर्ग कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति पूर्ण रूप से स्थिर और बाहरी दुनिया से बेखबर रहता है।

केवल ज्ञान की प्राप्ति:

अपनी १२ वर्षों की तपस्या के बाद, बाहुबली को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई, जो कि जैन धर्म में सर्वोच्च आध्यात्मिक ज्ञान माना जाता है। यह ज्ञान व्यक्ति को मोक्ष (मुक्ति) की ओर ले जाता है।

अन्य नाम और प्रसिद्ध मूर्ति:

बाहुबली को कम्मतेश्वर और गोम्मटेश्वर नामों से भी जाना जाता है। कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित गोम्मटेश्वर की विशालकाय मूर्ति बाहुबली को समर्पित है।

जैन धर्म में महत्व:

बाहुबली जैन धर्म में अहिंसा, त्याग और तपस्या का प्रतीक हैं। उनकी कहानी लोगों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित करती है और यह सिखाती है कि संसारिक मोह-माया को त्यागकर ही सच्ची मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।


Bahubali was the son of Rishabhanatha and the brother of the chakravartin Bharata. He is a revered figure in Jainism. He is said to have meditated motionless for 12 years in a standing posture (kayotsarga), with climbing plants having grown around his legs. After his 12 years of meditation, he is said to have attained omniscience.



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