
प्रतिमा (जैन धर्म)
Pratima (Jainism)
(Stage marking the spiritual rise of a lay person)
Summary
जैन धर्म में प्रतिमाएँ (Pratimas in Jainism)
जैन धर्म में, "प्रतिमा" एक आध्यात्मिक सीढ़ी या चरण का प्रतीक है जो एक श्रावक (गृहस्थ व्यक्ति) के आध्यात्मिक विकास को दर्शाता है। ऐसी ग्यारह सीढ़ियाँ हैं जिन्हें "प्रतिमा" कहा जाता है। इन ग्यारह प्रतिमाओं को पार करने के बाद, व्यक्ति श्रावक नहीं रहता, बल्कि एक मुनी (साधु) बन जाता है।
प्रतिमा और व्रत:
गृहस्थों के लिए निर्धारित नियमों को बारह व्रतों (अनुशासन) और ग्यारह प्रतिमाओं (चरणों) में विभाजित किया गया है, और इनका वर्णन आचार-संहिताओं (श्रावकाचारों) में मिलता है।
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख:
इन प्रतिमाओं का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि रत्नकरण्ड श्रावकाचार (दूसरी शताब्दी ईस्वी)।
प्रतिमाओं का महत्व:
प्रतिमाएँ, एक श्रावक के आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करती हैं। प्रत्येक प्रतिमा, कुछ नैतिक और आध्यात्मिक नियमों का पालन करने की आवश्यकता पर बल देती है, जिससे व्यक्ति मुक्ति (मोक्ष) के निकट पहुँचता है।
सारांश:
संक्षेप में, जैन धर्म में प्रतिमाएँ, एक श्रावक के लिए आध्यात्मिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। यह एक क्रमबद्ध प्रणाली है जो व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है।