
डोगरा-तिब्बती युद्ध
Dogra–Tibetan war
(1841–1842 war between the Dogra State of Jammu and Tibet)
Summary
डोगरा-तिब्बती युद्ध: एक विस्तृत विवरण
1841 से 1842 तक चले डोगरा-तिब्बती युद्ध को चीन-सिख युद्ध के रूप में भी जाना जाता है। इस युद्ध में जम्मू के डोगरा शासक गुलाब सिंह की सेना (जो सिख साम्राज्य के अधीन थी) और चीन के संरक्षण में तिब्बत की सेना आमने-सामने थी।
युद्ध का कारण:
युद्ध का मुख्य कारण लद्दाख में व्यापार मार्गों का नियंत्रण था। गुलाब सिंह के सेनापति, कुशल जनरल ज़ोरावर सिंह काहलूरिया ने लद्दाख पर विजय प्राप्त करने के बाद, लद्दाख में व्यापार मार्गों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपनी सीमाओं का विस्तार करने का प्रयास किया।
युद्ध का संचालन:
ज़ोरावर सिंह ने अपनी सेना के साथ तिब्बत पर आक्रमण किया। प्रतिकूल मौसम के बावजूद ज़ोरावर सिंह ने कई जीत हासिल की। लेकिन, 1842 में तक्लाकोट (पुरंग) में ज़ोरावर सिंह की सेना को तिब्बती सेना ने हरा दिया, जिसमें ज़ोरावर सिंह मारा गया।
तिब्बती सेना ने लद्दाख पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। गुलाब सिंह ने अपने भतीजे जवाहर सिंह के नेतृत्व में एक नई सेना भेजी। 1842 में चुशुल के पास एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें तिब्बती सेना को हार का सामना करना पड़ा।
युद्ध का परिणाम:
1842 में एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे युद्ध से पहले की स्थिति बरक़रार रही।
डोगरा-तिब्बती युद्ध के बारे में महत्वपूर्ण बातें:
- यह युद्ध दो शक्तियों के बीच एक सीमा विवाद के कारण हुआ था।
- युद्ध में दोनों पक्षों ने बहादुरी और साहस का परिचय दिया।
- युद्ध के परिणामस्वरूप लद्दाख में स्थिति स्थिर हो गई।
- यह युद्ध भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने जम्मू और कश्मीर के भविष्य को प्रभावित किया।