
निगोडा
Nigoda
(Realm of cosmology in the Jain religion)
Summary
निगोद: जैन धर्म में सूक्ष्म जीवन का क्षेत्र
जैन धर्म के ब्रह्माण्ड विज्ञान में, निगोद एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ असंख्य मात्रा में अदृश्य जीवों के निम्नतम रूप निवास करते हैं। इन जीवों के पास स्वयं के प्रयासों से मुक्ति पाने की कोई उम्मीद नहीं होती है।
निगोद क्या हैं?
जैन ग्रंथों में निगोदों का वर्णन सूक्ष्मजीवों के रूप में किया गया है जो विशाल समूहों में रहते हैं। इन जीवों में केवल एक इंद्रिय होती है, उनका जीवनकाल बहुत छोटा होता है और कहा जाता है कि ये ब्रह्मांड के हर हिस्से में व्याप्त हैं, यहाँ तक कि पौधों के ऊतकों और जानवरों के मांस में भी।
निगोद बनाम सिद्धशिला
निगोद, सिद्धशिला (ब्रह्मांड के शीर्ष) के विपरीत है, जहाँ मुक्त आत्माएँ सर्वज्ञता और शाश्वत आनंद में विद्यमान रहती हैं।
मुक्ति और निगोद
जैन परंपरा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि जब कोई मनुष्य मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करता है या यदि कोई मनुष्य कर्म के कारण निगोद के रूप में जन्म लेता है, तो निगोद से किसी अन्य जीव को स्वयं के प्रयास और आशा की क्षमता प्रदान की जाती है।
जीवों का वर्गीकरण
निगोद, जीव (आत्मा) के निम्नतम वर्ग से संबंधित है।
विस्तृत विवरण:
- निगोद में रहने वाले जीवों को स्वयं के प्रयासों से मुक्ति नहीं मिल सकती क्योंकि उनके पास चेतना का निम्नतम स्तर होता है।
- इन जीवों का जीवनकाल बहुत कम होता है और ये लगातार जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे रहते हैं।
- जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत जोर दिया जाता है और निगोदों की उपस्थिति इस बात का एक उदाहरण है कि हमें सभी जीवों के प्रति, यहाँ तक कि सूक्ष्मतम जीवों के प्रति भी, दया और करुणा का भाव रखना चाहिए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि निगोद एक दंडात्मक क्षेत्र नहीं है, बल्कि कर्म के चक्र में एक स्वाभाविक अवस्था है। जैन धर्म सिखाता है कि सभी जीवों में मुक्ति पाने की क्षमता है, लेकिन इसके लिए उन्हें आत्म-साक्षात्कार और कर्म से मुक्ति का मार्ग अपनाना होगा।