Jain_vegetarianism

जैन शाकाहार

Jain vegetarianism

(Set of religion-based dietary rules)

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जैन शाकाहार: एक विस्तृत व्याख्या

जैन शाकाहार जैन धर्म और दर्शन के अनुयायियों द्वारा अपनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण और कठोर आहार है। यह भारतीय उपमहाद्वीप और उसके बाहर आध्यात्मिक रूप से प्रेरित आहार का एक अग्रणी उदाहरण है। जैन भोजन पूरी तरह से लैक्टो-शाकाहारी होता है और इसमें जड़ और भूमिगत सब्जियां जैसे आलू, लहसुन, प्याज आदि शामिल नहीं होती हैं।

इसके पीछे मुख्य कारण हैं:

  • अहिंसा: जैन धर्म अहिंसा को सर्वोपरि मानता है। जैन मान्यता के अनुसार जड़ वाली सब्जियों को खाने से छोटे कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुँचता है। इसके अलावा, पूरी पौधे को उखाड़ने से उसकी भी हत्या होती है जो अहिंसा के सिद्धांत के विरुद्ध है।
  • कर्म का सिद्धांत: जैन धर्म के अनुसार, हर वह कार्य जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी जीव की हत्या हो या उसे चोट पहुंचे, हिंसा माना जाता है। हिंसा करने से कर्मबंधन होता है जो आत्मा को जन्म-मरण के चक्र में बांधे रखता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है, जो कर्मबंधन से मुक्ति के बाद ही संभव है। अहिंसा का पालन करके ही कर्मबंधन से मुक्ति पाई जा सकती है।

जैन शाकाहार के मुख्य पहलू:

  • मांस, मछली और अंडे का त्याग: जैन धर्म में मांस, मछली और अंडे का सेवन पूर्णतया वर्जित है क्योंकि इनका सेवन हिंसा पर आधारित है।
  • पंचेंद्रिय जीवों का सेवन: जैन धर्म में जीवों को उनकी इंद्रियों के आधार पर पाँच श्रेणियों में बाँटा गया है। गृहस्थ जीवन जीने वाले जैन श्रावकों को केवल एक इंद्रिय वाले जीवों (जैसे सब्जियां, अनाज) का सेवन करने की अनुमति होती है।
  • साधु और श्रावक दोनों के लिए: जैन धर्म में साधु और श्रावक दोनों को ही शाकाहार का पालन करना अनिवार्य है।
  • त्याग और सादगी: जैन शाकाहार त्याग और सादगी के सिद्धांतों को बढ़ावा देता है।

सारांश में, जैन शाकाहार केवल एक आहार पद्धति नहीं बल्कि अहिंसा, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित एक जीवनशैली है। यह जैन धर्म की पहचान का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है और जैन समुदाय के लोगों के जीवन को आकार देता है।


Jain vegetarianism is practised by the followers of Jain culture and philosophy. It is one of the most rigorous forms of spiritually motivated diet on the Indian subcontinent and beyond. The Jain cuisine is completely lacto-vegetarian and also excludes root and underground vegetables such as potato, garlic, onion etc., to prevent injuring small insects and microorganisms; and also to prevent the entire plant getting uprooted and killed. It is practised by Jain ascetics and lay Jains.



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