
बुर्यातिया में बौद्ध धर्म
Buddhism in Buryatia
(Buddhism among the Buryat people)
Summary
बौद्ध धर्म का बुर्यातिया में इतिहास और विकास (Buddhism in Buryatia in Hindi)
साइबेरिया, रूस में स्थित बुर्यातिया में बौद्ध धर्म का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है। उस समय तिब्बती बौद्ध धर्म ने इस क्षेत्र में अपनी जड़ें जमाना शुरू किया। सेलेंगा और ज़ेडे बुर्यात जैसे जातीय समूहों ने पहले-पहल इस धर्म को अपनाया और धीरे-धीरे यह पूरे ट्रांसबाइकाल क्षेत्र में फैल गया।
ज़ारशाही रूस और बौद्ध धर्म:
1741 में, रूसी साम्राज्य ने बौद्ध धर्म को आधिकारिक मान्यता दी और "दत्सन" नामक बौद्ध मठ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। यह बौद्ध धर्म के प्रसार और विकास में एक महत्वपूर्ण कदम था।
सोवियत काल में चुनौतियाँ:
हालांकि, सोवियत काल में बौद्ध धर्म को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। धार्मिक संस्थानों को बंद कर दिया गया और धार्मिक प्रथाओं पर रोक लगा दी गई। इस दौरान कई बौद्ध मंदिरों और विहारों को नष्ट कर दिया गया और धार्मिक नेताओं को सताया गया।
पुनर्जागरण और वर्तमान स्थिति:
सोवियत संघ के पतन के बाद, बुर्यातिया में बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण हुआ। नए मंदिरों का निर्माण हुआ और पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया। आज, बौद्ध धर्म बुर्यातिया के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग है।
बुर्यातिया में बौद्ध धर्म की विशेषताएँ:
- वज्रयान बौद्ध धर्म: बुर्यातिया में प्रचलित बौद्ध धर्म मुख्यतः वज्रयान बौद्ध धर्म का ही एक रूप है, जिसमें तिब्बत की गेलुग परंपरा का गहरा प्रभाव दिखता है।
- त्सोंग्खापा का सम्मान: यहाँ के लोग शाक्यमुनि बुद्ध के साथ-साथ त्सोंग्खापा को भी बहुत सम्मान देते हैं।
- स्थानीय मान्यताओं का समावेश: बुर्यातिया के बौद्ध धर्म में तिब्बती बौद्ध धर्म के साथ-साथ स्थानीय मान्यताओं और रीति-रिवाजों का भी समावेश हुआ है, जिससे यह एक अनूठा रूप धारण करता है।
बौद्ध धर्म ने बुर्यातिया की संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी है। इसका प्रभाव दर्शन, कला, साहित्य और यहाँ तक कि वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में भी देखा जा सकता है।