
जैन स्कूल और शाखाएँ
Jain schools and branches
(Major schools of thought)
Summary
जैन धर्म
जैन धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म है जिसकी स्थापना किसी एक व्यक्ति ने नहीं की थी। यह माना जाता है कि यह धर्म 24 तीर्थंकरों द्वारा प्रवर्तित किया गया था। तीर्थंकर वो आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति) प्राप्त की थी।
जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हैं:
- दिगंबर: दिगंबर जैन धर्म के अनुयायी पूर्ण निर्ग्रंथ होते हैं और सांसारिक मोह-माया का पूर्णतः त्याग करते हैं। ये भोजन, वस्त्र, और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं का भी त्याग कर देते हैं। दिगंबर मानते हैं कि केवल पुरुष ही मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
- श्वेतांबर: श्वेतांबर जैन धर्म के अनुयायी सादा सफेद वस्त्र धारण करते हैं। ये पूर्ण निर्ग्रंथ नहीं होते हैं लेकिन सांसारिक जीवन का त्याग करके सादगी से जीवन जीते हैं। श्वेतांबर मानते हैं कि महिलाएं भी मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
इन दोनों प्रमुख संप्रदायों के अलावा, जैन धर्म के अंदर और भी कई उप-संप्रदाय और परंपराएं हैं।
भले ही इन संप्रदायों के रीति-रिवाजों और मान्यताओं में कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन सभी जैन धर्म के मूल सिद्धांतों और दर्शन को मानते हैं:
जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत:
- अहिंसा: जैन धर्म अहिंसा को सर्वोपरि मानता है। इसका अर्थ है कि किसी भी जीव को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए।
- सत्य: जैन धर्म सत्यवादिता पर जोर देता है।
- अस्तेय: जैन धर्म में चोरी करना वर्जित है।
- अपरिग्रह: जैन धर्म सांसारिक वस्तुओं के प्रति मोह और संग्रह न करने पर बल देता है।
- ब्रह्मचर्य: जैन धर्म में ब्रह्मचर्य का पालन महत्वपूर्ण माना जाता है।
जैन धर्म का मुख्य उद्देश्य कर्म के बंधन से मुक्ति पाना और मोक्ष प्राप्त करना है।
जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है और इसके सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे। यह धर्म अहिंसा, सत्य और करुणा का संदेश देता है जो आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है।