
अजितनाथ
Ajitanatha
(Second Tirthankara in Jainism)
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अजितनाथ: द्वितीय तीर्थंकर
"अजितनाथ" का अर्थ होता है "अजेय"। जैन धर्म के अनुसार, वर्तमान "अवसर्पिणी" काल (आधा समय चक्र) के दूसरे तीर्थंकर थे अजितनाथ।
जन्म और परिवार:
- अजितनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के राजा जितशत्रु और रानी विजया के यहाँ अयोध्या में हुआ था।
तीर्थंकर:
- तीर्थंकर जैन धर्म में मुक्त आत्मा होते हैं जिन्होंने अपने सारे कर्मों को नष्ट कर दिया है और मोक्ष (मुक्ति) को प्राप्त कर लिया है।
- तीर्थंकर अपने ज्ञान के माध्यम से जीवों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।
अजितनाथ का महत्व:
- अजितनाथ दूसरे तीर्थंकर होने के कारण जैन धर्म में विशेष स्थान रखते हैं।
- वह त्याग, तपस्या और अहिंसा के आदर्शों का प्रतीक हैं।
अधिक जानकारी:
- जैन ग्रंथों में अजितनाथ के जीवन और उपदेशों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- "अवसर्पिणी" काल के बारे में और जानने के लिए जैन धर्म के समय चक्र की अवधारणा को समझना ज़रूरी है।
हिंदी में सरल भाषा में:
अजितनाथ जी दूसरे तीर्थंकर थे। उनका जन्म अयोध्या में राजा जितशत्रु और रानी विजया के घर हुआ था। तीर्थंकर वो होते हैं जिन्होंने अपने सारे पाप कर्मों को नष्ट करके मोक्ष पा लिया है। वो लोगों को सही रास्ता दिखाते हैं जिससे वो भी मोक्ष प्राप्त कर सकें। अजितनाथ जी ने भी यही किया।
Ajitanatha was the second tirthankara of the present age, avasarpini according to Jainism. He was born to king Jitashatru and Queen Vijaya at Ayodhya in the Ikshvaku dynasty. He was a liberated soul which has destroyed all of its karma.