
अभिनंदननाथ
Abhinandananatha
(Fourth Tirthankara in Jainism)
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अभिनंदननाथ: जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर
अभिनंदननाथ या अभिनंदन स्वामी जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर थे। वे वर्तमान अवसर्पिणी काल में हुए थे। माना जाता है कि उन्होंने 50 लाख पूर्व तक जीवन व्यतीत किया था।
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- उनका जन्म अयोध्या में इक्ष्वाकु वंश के राजा संवर और रानी सिद्धार्थ के यहाँ हुआ था।
- उनका जन्म माघ मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीया को हुआ था।
दीक्षा और मोक्ष:
जैन मान्यताओं के अनुसार, अभिनंदननाथ ने अपने जीवनकाल में कठोर तपस्या और साधना की और अंततः उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने अपना शेष जीवन लोगों को धर्म का उपदेश देने और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने में बिताया। अंत में, उन्होंने सभी कर्मों का नाश कर सिद्ध की अवस्था प्राप्त की।
अतिरिक्त जानकारी:
- तीर्थंकर: जैन धर्म में तीर्थंकर वे महान आत्माएँ होती हैं जिन्होंने कर्मों के बंधन से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त कर लिया है और जो अन्य लोगों को भी मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।
- अवसर्पिणी काल: जैन मान्यताओं के अनुसार, समय चक्र के दो भाग होते हैं - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है, जो धीरे-धीरे पतन का काल माना जाता है।
- पूर्व: जैन धर्म में समय की एक बहुत बड़ी इकाई।
- केवलज्ञान: पूर्ण ज्ञान की अवस्था।
- सिद्ध: कर्मों से पूर्णतः मुक्त आत्मा।
Abhinandananatha or Abhinandana Swami was the fourth Tirthankara of the present age (Avasarpini). He is said to have lived for 50 lakh purva. He was born to King Sanvara and Queen Siddhartha at Ayodhya in the Ikshvaku clan. His birth date was the second day of the Magh shukla month of the Indian calendar. According to Jain beliefs, he became a siddha, a liberated soul which has destroyed all of its Karma.