
अनंतनाथ
Anantanatha
(14th Tirthankara in Jainism)
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अनंतनाथ: जैन धर्म के चौदहवें तीर्थंकर
अनंतनाथ जैन धर्म के वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौदहवें तीर्थंकर थे। जैन मान्यताओं के अनुसार, वह सिद्ध बन गए, एक मुक्त आत्मा जिसने अपने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है।
आइए अनंतनाथ जी के बारे में विस्तार से जानें:
- तीर्थंकर: जैन धर्म में, तीर्थंकर वो महान आत्माएँ होती हैं जिन्होंने मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग प्रशस्त किया है। वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर पूर्ण ज्ञान और आनंद की प्राप्ति करते हैं।
- अवसर्पिणी काल: जैन космология के अनुसार, समय दो भागों में विभाजित है: उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। उत्सर्पिणी काल में धर्म का विकास होता है जबकि अवसर्पिणी काल में धर्म का ह्रास होता है। वर्तमान में हम अवसर्पिणी काल में जी रहे हैं।
- सिद्ध: सिद्ध वह आत्मा होती है जिसने सभी कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त कर लिया है। सिद्ध पूर्ण ज्ञान, पूर्ण आनंद और पूर्ण शक्ति से परिपूर्ण होते हैं।
अनंतनाथ जी का जीवन:
हालांकि अनंतनाथ जी के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन जैन ग्रंथों में उनका उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि वह एक राजा के पुत्र थे और उन्होंने त्याग और तपस्या का मार्ग अपनाकर मोक्ष प्राप्त किया।
अनंतनाथ जी का संदेश:
अनंतनाथ जी का संदेश सभी तीर्थंकरों के समान ही था - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच महाव्रतों का पालन करके और कर्मों से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
Anantanatha was the fourteenth Tirthankara of the present age (Avasarpini) of Jainism. According to Jain beliefs, he became a siddha, a liberated soul which has destroyed all of its karma.