Chandraprabha

चंद्रप्रभा

Chandraprabha

(8th Jain Tirthankara)

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चंद्रप्रभा: जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर

चंद्रप्रभा (अर्थ: चाँद का स्वामी) या चंद्रनाथ, जैन धर्म के वर्तमान अवसर्पिणी काल के आठवें तीर्थंकर हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रप्रभा का जन्म इक्ष्वाकु वंश के राजा महासेन और रानी लक्ष्मणा देवी के यहाँ चंद्रपुरी में हुआ था। जैन ग्रंथों के अनुसार, उनका जन्मदिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को था।

तीर्थंकर के रूप में जीवन:

जैसे की हर तीर्थंकर का जीवन, चंद्रप्रभा ने भी तपस्या और साधना का मार्ग अपनाया। उन्होंने कठोर तपस्या करके अपने कर्मों का नाश किया और केवल ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया और लोगों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

मोक्ष:

अपने जीवन के अंत में, चंद्रप्रभा ने मोक्ष प्राप्त किया - वह अवस्था जहाँ आत्मा सभी कर्मों से मुक्त हो जाती है और जन्म-मरण के चक्र से हमेशा के लिए मुक्ति पा लेती है।

चिन्ह और प्रतीक:

  • चिन्ह: चंद्रप्रभा का चिन्ह चाँद है।
  • रंग: उनका रंग सफेद है।
  • यक्ष: उनका यक्ष विजय है।
  • यक्षिणी: उनकी यक्षिणी ज्वालामालिनी हैं।

महत्व:

चंद्रप्रभा जैन धर्म के एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर हैं और उनके भक्त उन्हें आस्था और भक्ति के साथ पूजते हैं। उनका जीवन हमें त्याग, तपस्या और आध्यात्मिक ज्ञान के महत्व को दर्शाता है।


Chandraprabha or Chandranatha is the eighth Tirthankara of Tīrthaṅkara of Jainism in the present age. According to traditional accounts, he was born to King Mahasena and Queen Lakshmana Devi at Chandrapuri to the Ikshvaku dynasty. According to Jain texts, his birth-date was the twelfth day of the Posh Krishna month of the Indian calendar. He is said to have become a siddha, a liberated soul which has destroyed all of its karma.



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