Dharmanatha

धर्मनाथ

Dharmanatha

(15th Tirthankara in Jainism in current cycle of Jain cosmology)

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धर्मनाथ: पंद्रहवें तीर्थंकर

(अधिक विस्तार से)

धर्मनाथ वर्तमान अवसर्पिणी काल के पंद्रहवें तीर्थंकर थे। जैन धर्म के अनुसार, वे एक सिद्ध बने, अर्थात उन्होंने अपने सभी कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त किया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

  • धर्मनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के राजा भानु और रानी सुव्रता के घर रत्नपुरी में हुआ था।
  • उनका जन्म माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था।

तीर्थंकर के रूप में:

  • धर्मनाथ ने कठोर तपस्या और साधना करके केवलज्ञान प्राप्त किया।
  • उन्होंने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का पालन करने की शिक्षा दी।
  • उनके प्रतीक चिन्ह वज्र है, जो ज्ञान और दृढ़ता का प्रतीक है।

मंदिर:

  • गुजरात के अहमदाबाद में स्थित हठीसिंह जैन मंदिर धर्मनाथ को समर्पित है।
  • इस मंदिर का निर्माण 1848 ईस्वी में करवाया गया था।

महत्व:

धर्मनाथ जैन धर्म के एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर हैं। उनका जीवन और शिक्षाएँ हमें सत्य, अहिंसा और त्याग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।


Dharmanatha was the fifteenth Jain Tirthankara of the present age (Avasarpini). According to Jain beliefs, he became a siddha, a liberated soul which has destroyed all of its karma. Dharmanath was born to King Bhanu Raja and Queen Suvrata Rani at Ratnapuri in the Ikshvaku dynasty. His birth date was the third day of the Magh Sukla month of the Indian calendar.



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