
पुष्पदंत
Pushpadanta
(Ninth Tirthankara in Jainism)
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पुष्पदन्त: जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर
पुष्पदन्त, जिन्हें सुविधिनाथ भी कहा जाता है, जैन धर्म के वर्तमान अवसर्पिणी काल के नौवें तीर्थंकर थे। जैन मान्यता के अनुसार, वह एक सिद्ध और अरिहंत बने, अर्थात उन्होंने अपने सभी कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त किया।
आइए इस वाक्य को और विस्तार से समझें:
- तीर्थंकर: जैन धर्म में तीर्थंकर वो महान आत्मा होते हैं जिन्होंने मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया और दूसरों को भी मुक्ति का रास्ता दिखाया।
- अवसर्पिणी काल: जैन मान्यता के अनुसार समय दो भागों में विभाजित है - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। अवसर्पिणी काल में धर्म का ह्रास होता है और मनुष्य के गुणों में कमी आती है।
- सिद्ध: सिद्ध वो आत्मा होती है जिसने सभी कर्मों का नाश कर दिया है और मोक्ष प्राप्त कर लिया है।
- अरिहंत: अरिहंत वो आत्मा होती है जिसने चारों घाती कर्मों का नाश कर दिया है और केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया है।
पुष्पदन्त भगवान के जीवन से जुड़ी विस्तृत जानकारी जैन ग्रंथों में मिलती है।
In Jainism, Pushpadanta, also known as Suvidhinatha, was the ninth Tirthankara of the present age (Avasarpini). According to Jain belief, he became a siddha and an arihant, a liberated soul that has destroyed all of its karma.