
कुंथुनाथ
Kunthunatha
(17th Tirthankara in Jainism in current cycle of Jain cosmology)
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कुंथुनाथ: जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर
यह लेख जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर, कुंथुनाथ के बारे में विस्तार से बताता है।
कौन थे कुंथुनाथ?
- कुंथुनाथ जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से सोलहवें थे।
- वे वर्तमान अवसर्पिणी काल के छठे चक्रवर्ती सम्राट और बारहवें कामदेव भी थे।
- जैन मान्यताओं के अनुसार, कुंथुनाथ ने अपने सभी कर्मों का नाश करके सिद्धि प्राप्त की और एक मुक्त आत्मा बन गए।
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- कुंथुनाथ का जन्म राजा सूर्य (सूर) और रानी श्रद्धेवी के घर हस्तिनापुर में हुआ था।
- उनका जन्म वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन हुआ था।
- वे इक्ष्वाकु वंश से संबंधित थे।
जैन धर्म में महत्व:
- तीर्थंकर के रूप में, कुंथुनाथ ने लोगों को मोक्ष का मार्ग दिखाया।
- उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य जैसे सिद्धांतों का प्रचार किया।
- उनके उपदेशों ने अनगिनत लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर किया।
यह लेख कुंथुनाथ के जीवन और उनके महत्व का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करता है। जैन धर्म में उनकी पूजा और सम्मान किया जाता है और उनके जीवन से हमें ज्ञान और मुक्ति का मार्ग मिलता है.
Kunthunath was the seventeenth Tirthankara, sixth Chakravartin and twelfth Kamadeva of the present half time cycle, Avasarpini. According to Jain beliefs, he became a siddha, liberated soul which has destroyed all of its karma. Kunthunatha was born to King Surya (Sura) and Queen Shridevi at Hastinapur in the Ikshvaku dynasty on the fourteenth day of the Vaishakh Krishna month of the Indian calendar.