
बुद्धपालित
Buddhapālita
(5th/6th century Indian Buddhist philosopher)
Summary
बुद्धपालित: नागार्जुन के दर्शन के एक महत्वपूर्ण व्याख्याकार
बुद्धपालित (चीनी: 佛護, तिब्बती: སངས་རྒྱས་བསྐྱངས་, वायली: sangs rgyas bskyangs, ५वीं-६वीं शताब्दी ईस्वी) एक भारतीय महायान बौद्ध विद्वान थे जिन्होंने नागार्जुन और आर्यदेव की रचनाओं पर टीकाएँ लिखीं। उनकी मूलमध्यमकवृत्ति, नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना मूलमध्यमककारिका पर एक प्रभावशाली टीका है।
बुद्धपालित का दृष्टिकोण और आलोचना:
बुद्धपालित ने प्रसंग नामक तर्क पद्धति का उपयोग करके नागार्जुन के शून्यता के सिद्धांत की व्याख्या की। इस पद्धति में, विरोधी के विचारों में विरोधाभास दिखाकर उनका खंडन किया जाता है, बिना अपनी कोई स्थापना प्रस्तुत किए। उनके समकालीन विद्वान भावविवेक ने इस दृष्टिकोण की आलोचना की। भावविवेक का मानना था कि केवल विरोधाभास दिखाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि अपने पक्ष में भी स्वतंत्र तर्क प्रस्तुत करने चाहिए।
चंद्रकीर्ति द्वारा बचाव:
बाद में, ७वीं शताब्दी के विद्वान चंद्रकीर्ति ने बुद्धपालित के दृष्टिकोण का समर्थन किया। उन्होंने तर्क दिया कि शून्यता का सिद्धांत स्वयं में ही किसी भी स्थापना से परे है, इसलिए इसकी व्याख्या भी प्रसंग पद्धति से ही की जानी चाहिए।
तिब्बती बौद्ध धर्म पर प्रभाव:
बाद में, तिब्बती बौद्ध धर्म में मध्यमक दर्शन की दो प्रमुख परंपराएं विकसित हुईं: प्रासंगिक और स्वातंत्रिक. प्रासंगिक परंपरा बुद्धपालित और चंद्रकीर्ति के दृष्टिकोण का पालन करती है, जबकि स्वातंत्रिक परंपरा भावविवेक के दृष्टिकोण का पालन करती है. हालांकि, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि ये दोनों ही परंपराएं नागार्जुन के मूल दर्शन का ही भिन्न-भिन्न रूप से व्याख्या करती हैं.