
भिक्खु
Bhikkhu
(Buddhist monk)
Summary
बौद्ध भिक्षु: सादा जीवन, उच्च विचार
भिक्षु शब्द का अर्थ है "भिक्षा मांगने वाला"। बौद्ध धर्म में, भिक्षु वो पुरुष होते हैं जिन्होंने सांसारिक जीवन त्याग कर धर्म की दीक्षा ली होती है। महिलाओं के लिए यह शब्द भिक्षुणी होता है। भिक्षु और भिक्षुणी मिलकर संघ का निर्माण करते हैं जो बौद्ध समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भिक्षुओं का जीवन प्रतिमोक्ष नामक नियमों के अनुसार चलता है। यह नियम सादगी, ध्यान और आत्मज्ञान की प्राप्ति पर केंद्रित होते हैं। भिक्षुओं का जीवन निर्वाण प्राप्ति के लिए समर्पित होता है।
श्रामणेर और श्रामणेरी वे युवा होते हैं जो २० वर्ष से कम उम्र के होते हैं और जिन्होंने अभी पूरी तरह से दीक्षा नहीं ली है। २० वर्ष की आयु पूरी होने पर वे पूर्ण रूप से भिक्षु या भिक्षुणी बन सकते हैं।
थोड़ा और विस्तार से:
- भिक्षा: भिक्षु अपना जीवनयापन भिक्षा मांग कर करते हैं। वे सुबह के समय घर-घर जाकर भोजन ग्रहण करते हैं। यह उन्हें सांसारिक मोह माया से दूर रहने और लोगों की सेवा करने का अवसर प्रदान करता है।
- साधना: भिक्षुओं का जीवन ध्यान, अध्ययन और नैतिक आचरण पर केंद्रित होता है। वे बुद्ध के उपदेशों का पालन करते हैं और दूसरों को भी धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
- त्याग: भिक्षु सांसारिक सुखों का त्याग करते हैं। उनका जीवन सादा होता है और वे केवल आवश्यक वस्तुओं का ही उपयोग करते हैं। यह उन्हें मोह माया से मुक्त होकर आध्यात्मिक प्रगति करने में सहायता करता है।
संक्षेप में, भिक्षु बौद्ध धर्म के स्तंभ हैं जो बुद्ध के उपदेशों का प्रचार-प्रसार करते हैं और अपने जीवन से दूसरों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।