
योग (दर्शन)
Yoga (philosophy)
(One of six schools of Hindu philosophy)
Summary
योग दर्शन: एक विस्तृत विवरण
योग दर्शन हिंदू दर्शन की छह मुख्य परंपराओं में से एक है। हालांकि, पहली सहस्त्राब्दी ईस्वी के अंत तक ही योग को एक अलग विचारधारा के रूप में भारतीय ग्रंथों में उल्लेखित किया जाता है, जो सांख्य से अलग है। प्राचीन, मध्ययुगीन और अधिकांश आधुनिक साहित्य में योग-दर्शन को केवल "योग" के रूप में संदर्भित किया जाता है। योग के विचारों का एक व्यवस्थित संग्रह "पतंजलि योग सूत्र" में पाया जाता है, जो योग का एक प्रमुख ग्रंथ है जिसने भारतीय दर्शन के अन्य सभी स्कूलों को प्रभावित किया है।
योग दर्शन का मूल सिद्धांत
योग दर्शन का मेटाफ़िज़िक्स सांख्य के द्वैतवाद पर आधारित है, जिसमें ब्रह्मांड को दो वास्तविकताओं से बना माना जाता है: पुरुष (साक्षी-चेतना) और प्रकृति (प्रकृति)। जीव (एक जीवित प्राणी) को एक ऐसी स्थिति के रूप में माना जाता है जिसमें पुरुष किसी न किसी रूप में प्रकृति से बंधा होता है, विभिन्न तत्वों, इंद्रियों, भावनाओं, गतिविधियों और मन के विभिन्न क्रमपरिवर्तन और संयोजनों में। असंतुलन या अज्ञानता की स्थिति में, एक या अधिक घटक दूसरों पर हावी हो जाते हैं, जिससे बंधन का रूप बनता है। इस बंधन का अंत मुक्ति या मोक्ष कहलाता है, जिसे योग और सांख्य दोनों ही स्कूलों में हिंदू धर्म द्वारा स्वीकार किया जाता है और जिसे अंतर्दृष्टि और आत्म-संयम द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
योग दर्शन की नैतिकता
योग-दर्शन का नैतिक सिद्धांत यम और नियम पर आधारित है, साथ ही सांख्य के गुण सिद्धांत के तत्व भी शामिल हैं। यम और नियम, जीवन के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं जो हमें सद्गुणों की ओर ले जाते हैं और अशुभ गतिविधियों से दूर रखते हैं। यम पाँच निषेधात्मक सिद्धांतों को दर्शाते हैं: अहिंसा (अहिंसा), सत्य (सत्य), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य) और अपरिग्रह (लालच न करना)। नियम पाँच सकारात्मक सिद्धांतों को दर्शाते हैं: शौच (शुद्धता), संतोष (संतोष), तप (तपस्या), स्वध्याय (आत्म-अध्ययन) और ईश्वर-प्रणिधान (ईश्वर पर विश्वास)।
योग दर्शन का ज्ञानमीमांसा
योग-दर्शन, सांख्य स्कूल की तरह, विश्वसनीय ज्ञान प्राप्त करने के साधनों के रूप में छह प्रमाण में से तीन पर निर्भर करता है। इनमें प्रत्यक्ष (अनुभव), अनुमान (अनुमान) और शब्द (आप्तवाक्य, विश्वसनीय स्रोतों का शब्द/साक्ष्य) शामिल हैं।
योग और सांख्य में अंतर
योग-दर्शन अनात्मवादी/नास्तिक सांख्य स्कूल से इस बात में अलग है कि यह "व्यक्तिगत, फिर भी अनिवार्य रूप से निष्क्रिय, देवता" या "व्यक्तिगत ईश्वर" (ईश्वर) की अवधारणा को शामिल करता है। योग दर्शन में ईश्वर को एक उच्च शक्ति के रूप में मान्यता दी जाती है जो मुक्ति के मार्ग को समझने और उसे प्राप्त करने में सहायता करता है।
योग दर्शन का महत्व
योग दर्शन का व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों ही पहलुओं पर गहरा प्रभाव है। यह न केवल मन, शरीर और आत्मा को जोड़ने का एक माध्यम है बल्कि जीवन के अर्थ और उद्देश्य को समझने में भी मदद करता है। योग का अभ्यास हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में शांति, संतुलन और सार्थकता लाता है।