Basic_points_unifying_Theravāda_and_Mahāyāna

थेरवाद और महायान को एकीकृत करने वाले मूल बिंदु

Basic points unifying Theravāda and Mahāyāna

(Buddhist ecumenical statement in 1967)

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थेरवाद और महायान को एकीकृत करने वाले बुनियादी सिद्धांत

यह 1967 में विश्व बौद्ध संघ परिषद (WBSC) के पहले सम्मेलन में बनाया गया एक महत्वपूर्ण बौद्ध एकतावादी वक्तव्य है। परिषद के संस्थापक महासचिव, आदरणीय पंडित पिंबुरे सोरता थेरा ने सभी विभिन्न बौद्ध परंपराओं के एकीकरण के लिए एक संक्षिप्त सूत्र प्रस्तुत करने का अनुरोध आदरणीय वाल्पोला राहुला से किया था। इस पाठ को तब परिषद द्वारा सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था।

इस दस्तावेज़ का महत्व:

  • बौद्ध धर्म में एकता: थेरवाद और महायान, बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाएँ हैं जिनके बीच मतभेद रहे हैं। यह वक्तव्य उन बुनियादी सिद्धांतों को रेखांकित करता है जो दोनों को एक सूत्र में पिरोते हैं।
  • सांप्रदायिकता का अंत: यह दस्तावेज़ विभिन्न बौद्ध सम्प्रदायों के बीच सद्भाव और सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
  • आधुनिक संदर्भ: यह वक्तव्य आधुनिक समय में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता और एकता पर जोर देता है।

इस दस्तावेज़ में उल्लिखित कुछ मुख्य बिंदु:

  • बुद्ध वचन: थेरवाद और महायान दोनों ही बुद्ध के उपदेशों को सर्वोपरि मानते हैं।
  • चतुराार्य सत्य: दोनों ही सम्प्रदाय दुःख, दुःख समुदाय, दुःख निरोध और दुःख निरोध गामिनी प्रतिपद अर्थात अष्टांगिक मार्ग को स्वीकार करते हैं।
  • अहिंसा और करुणा: दोनों ही परंपराएं अहिंसा और करुणा को जीवन का आधार मानती हैं।
  • मोक्ष का मार्ग: थेरवाद और महायान दोनों ही निर्वाण को दुखों से मुक्ति का मार्ग मानते हैं।

निष्कर्ष:

यह वक्तव्य बौद्ध धर्म के भीतर एकता और सद्भाव को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सभी बौद्धों को एकता के सूत्र में पिरोने वाले बुनियादी सिद्धांतों की याद दिलाता है।


The Basic Points Unifying the Theravāda and the Mahāyāna is an important Buddhist ecumenical statement created in 1967 during the First Congress of the World Buddhist Sangha Council (WBSC), where its founder Secretary-General, the late Venerable Pandita Pimbure Sorata Thera, requested the Ven. Walpola Rahula to present a concise formula for the unification of all the different Buddhist traditions. This text was then unanimously approved by the council.



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