
उत्तराध्ययन
Uttaradhyayana
(Śvētāmbara text)
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उत्तरध्ययन सूत्र: जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ
उत्तरध्ययन सूत्र जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथों में से एक है। इसमें कुल 36 अध्याय हैं, जिनमें से प्रत्येक जैन धर्म के सिद्धांतों, आचरणों और जीवन दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
इस ग्रंथ की खासियत:
- भगवान महावीर के उपदेश: कुछ विद्वानों का मानना है कि उत्तरध्ययन सूत्र में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, भगवान महावीर (599/540 - 527/468 ईसा पूर्व) के वास्तविक शब्द संकलित हैं।
- जैन धर्म का सार: यह ग्रंथ जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का विस्तार से वर्णन करता है।
- कर्म सिद्धांत: उत्तरध्ययन सूत्र में जैन धर्म के कर्म सिद्धांत को भी समझाया गया है, जो बताता है कि कैसे हमारे कर्म हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
- मोक्ष का मार्ग: यह ग्रंथ मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने के मार्ग का वर्णन करता है, जो कि जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य है।
- कहानियों और दृष्टांतों का प्रयोग: जटिल दार्शनिक अवधारणाओं को सरल बनाने के लिए, उत्तरध्ययन सूत्र में कहानियों, दृष्टांतों और उपमाओं का प्रयोग किया गया है।
आज भी प्रासंगिक:
उत्तरध्ययन सूत्र आज भी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह उन्हें जैन धर्म के सिद्धांतों को समझने और उनका पालन करने में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
Uttaradhyayana or Uttaradhyayana Sutra is one of the most important sacred books of Jains. It consists of 36 chapters, each of which deals with aspects of Jain doctrine and discipline. It is believed by some to contain the actual words of Bhagwan Mahavira - 24th Tirthankara in Jainism.