Samantabhadra_(Jain_monk)

समंतभद्र (जैन भिक्षु)

Samantabhadra (Jain monk)

(2nd-century CE Indian Jain monk)

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Summary

समंतभद्र: जैन धर्म के एक महान आचार्य

समंतभद्र एक दिगंबर आचार्य थे जो दूसरी शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्ध में जीवित थे। वे जैन धर्म के अनेकान्तवाद सिद्धांत के प्रबल समर्थक थे। "रत्नकारंद श्रावकाचार" उनकी सबसे लोकप्रिय कृति है। समंतभद्र उमास्वामी के बाद और पूज्यपाद से पहले जीवित रहे।

विवरण:

  • दिगंबर आचार्य: समंतभद्र एक दिगंबर जैन संत थे। दिगंबर जैन धर्म में संन्यासी पूर्णतया नग्न रहते हैं।
  • अनेकान्तवाद: अनेकान्तवाद जैन दर्शन का एक प्रमुख सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि सत्य का केवल एक ही दृष्टिकोण नहीं होता, बल्कि कई दृष्टिकोण हो सकते हैं।
  • रत्नकारंद श्रावकाचार: यह ग्रंथ जैन श्रावकों के लिए आचार संहिता है। इसमें आध्यात्मिक विकास, नीति, और दैनिक जीवन के लिए मार्गदर्शन दिया गया है।
  • जीवनकाल: समंतभद्र उमास्वामी (जो दूसरी शताब्दी ईस्वी के आरंभ में जीवित थे) के बाद और पूज्यपाद (जो चौथी शताब्दी ईस्वी में जीवित थे) से पहले जीवित रहे।

सारांश:

समंतभद्र एक महान जैन आचार्य थे जिन्होंने अनेकान्तवाद सिद्धांत को प्रचारित किया और "रत्नकारंद श्रावकाचार" ग्रंथ लिखा। उनकी शिक्षाएँ आज भी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक हैं।


Samantabhadra was a Digambara acharya who lived about the later part of the second century CE. He was a proponent of the Jaina doctrine of Anekantavada. The Ratnakaranda śrāvakācāra is the most popular work of Samantabhadra. Samantabhadra lived after Umaswami but before Pujyapada.



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