Śrāvaka_(Jainism)

श्रावक (जैन धर्म)

Śrāvaka (Jainism)

(Jain laity)

Summary
Info
Image
Detail

Summary

जैन धर्म में श्रावक: एक विस्तृत व्याख्या

जैन धर्म में, "श्रावक" या "सावग" शब्द का प्रयोग जैन धर्म के गृहस्थ अनुयायियों के लिए किया जाता है। यह शब्द जैन प्राकृत भाषा से लिया गया है। "श्रावक" शब्द की उत्पत्ति "श्रवण" शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है "सुनने वाला" (साधुओं के उपदेश)।

श्रावक और जैन संघ:

जैन धर्म में तीर्थंकर, "संघ" की स्थापना या पुनर्गठन करते हैं। यह संघ चार वर्गों में विभाजित होता है:

  • मुनि: पुरुष संन्यासी
  • आर्यिका: महिला संन्यासी
  • श्रावक: पुरुष अनुयायी
  • श्राविका: महिला अनुयायी

श्रावक: गृहस्थ व्रती:

जैन धर्म में दो प्रकार के व्रती होते हैं:

  1. गृहस्थ: यह अनुयायी छोटे व्रतों का पालन करते हैं।
  2. अनगार: यह अनुयायी बड़े व्रतों का पालन करते हुए संन्यास जीवन जीते हैं।

श्रावक: आंशिक संयम का मार्ग:

जैन ग्रंथ "पुरुषार्थसिद्ध्युपाय" के अनुसार:

"जो तपस्वी शुद्ध और पूर्ण चेतना में स्वयं को स्थापित करते हैं, वे पूर्ण संयम का पालन करते हैं। जो लोग आंशिक संयम के मार्ग का अभ्यास करते हैं, उन्हें श्रावक कहा जाता है।"

रत्नकरण श्रावकाचार: श्रावकों के लिए मार्गदर्शक:

"रत्नकरण श्रावकाचार" एक प्रमुख जैन ग्रंथ है जो एक श्रावक के आचरण पर विस्तार से चर्चा करता है।

इस प्रकार, जैन धर्म में श्रावक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे गृहस्थ जीवन जीते हुए भी जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हैं और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।


In Jainism, the word Śrāvaka or Sāvaga is used to refer to the Jain laity (householders). The word śrāvaka has its roots in the word śrāvana, i.e. the one who listens.



...
...
...
...
...
An unhandled error has occurred. Reload 🗙