Aptamimamsa

आप्तमीमांसा

Aptamimamsa

(Jain text composed by Acharya Samantabhadra)

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आप्तमीमांसा: एक सरल व्याख्या

आप्तमीमांसा, जिसे देवागमस्तोत्र भी कहा जाता है, जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना आचार्य समन्तभद्र ने की थी, जो कि दूसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुए एक महान जैन आचार्य थे।

११४ श्लोकों वाला यह ग्रंथ केवल ज्ञान (सर्वज्ञता) और सर्वज्ञ के गुणों की व्याख्या से शुरू होकर जैन दर्शन के अनुसार यथार्थ की गहन विवेचना करता है।

आपको और विस्तार से समझाते हैं:

  • आचार्य समन्तभद्र: जैन धर्म के दिगंबर परंपरा के एक महान आचार्य थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें आप्तमीमांसा प्रमुख है।
  • केवल ज्ञान: जैन दर्शन में, केवल ज्ञान का अर्थ है 'पूर्ण ज्ञान' या 'सर्वज्ञता'। यह मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने का एक आवश्यक तत्व माना जाता है।
  • सर्वज्ञ के गुण: जैन दर्शन के अनुसार, एक सर्वज्ञ व्यक्ति में अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, और अनंत आनंद जैसे गुण होते हैं।
  • यथार्थ: जैन दर्शन में यथार्थ का अर्थ है 'सत्य' या 'वास्तविकता'।

आप समझ सकते हैं कि यह ग्रंथ जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।


Aptamimamsa is a Jain text composed by Acharya Samantabhadra, a Jain acharya said to have lived about the latter part of the second century A.D. Āptamīmāṁsā is a treatise of 114 verses which discusses the Jaina view of Reality, starting with the concept of omniscience and the attributes of the Omniscient.



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