
सामायिक
Sāmāyika
(Vow of periodic concentration in Jainism)
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सामयिक : एकाग्रता का जैन व्रत (Jain Vow of Concentration)
सामयिक जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जो समय-समय पर एकाग्रता और आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करने पर केंद्रित है। यह श्रावक (गृहस्थ) और साधु, दोनों के लिए अनिवार्य कर्तव्यों में से एक माना जाता है।
शब्द की उत्पत्ति:
- सम: एक ही अवस्था या भाव
- समय: एक हो जाना
- सामयिकम्: जिसका उद्देश्य एकता हो
उद्देश्य:
सामयिक का उद्देश्य है मन को स्थिर और एकाग्र करना, समभाव विकसित करना, और किसी भी जीव को हानि पहुँचाने से बचना।
अभ्यास:
- गृहस्थ जीवन में तीसरे प्रतिमा (आध्यात्मिक स्तर) पर पहुँचने पर, व्यक्ति दिन में तीन बार सामयिक व्रत का पालन करने का संकल्प लेता है।
- जैन ग्रंथ पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय के अनुसार, सभी प्रकार के मोह और द्वेष को त्यागकर, सभी वस्तुओं के प्रति समभाव रखते हुए, आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए सामयिक का अभ्यास करना चाहिए।
प्रकार:
सामयिक दो प्रकार का होता है:
- समयबद्ध: एक निश्चित समय सीमा के लिए किया जाता है।
- असमयबद्ध: बिना किसी समय सीमा के किया जाता है।
महत्व:
जैन धर्म में सामयिक को पाँच प्रकार के आचरण (चारित्र) में से एक माना गया है। अन्य चार आचरण हैं:
- प्रतिक्रमण: अपने द्वारा किये गए अपराधों का पश्चाताप करना
- अहिंसा: किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना
- संयम: इंद्रियों पर नियंत्रण
- पूर्ण आचरण: उच्चतम स्तर का आध्यात्मिक आचरण
सारांश:
सामयिक एक महत्वपूर्ण जैन अभ्यास है जो मन को एकाग्र करने, समभाव विकसित करने और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जानने में सहायक होता है।
Sāmāyika is the vow of periodic concentration observed by the Jains. It is one of the essential duties prescribed for both the Śrāvaka (householders) and ascetics. The preposition sam means one state of being. To become one is samaya. That, which has oneness as its object, is sāmāyikam. Sāmāyika is aimed at developing equanimity and to refrain from injury.