Acharya_(Jainism)

आचार्य (जैन धर्म)

Acharya (Jainism)

(Head of an order of ascetics)

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आचार्य: जैन धर्म में एक पूजनीय पद

"आचार्य" शब्द का अर्थ होता है, साधुओं के एक समूह का प्रमुख। जैन धर्म में आचार्य एक बहुत ही सम्मानित पद होता है, जो ज्ञान, तपस्या और त्याग का प्रतीक है।

कुछ प्रसिद्ध आचार्यों में भद्रबाहु, कुन्दकुन्द, सामन्तभद्र, उमास्वामी और स्थूलभद्र शामिल हैं।

दिगंबर जैन धर्म के अनुसार, एक आचार्य में 36 मुख्य गुण (मूल गुण) होते हैं:

  • बारह प्रकार की तपस्या (तपस): ये तपस्याएं मन, वचन और कर्म की शुद्धि के लिए होती हैं।
  • दस प्रकार के धर्म (दश-लक्षण धर्म): क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
  • पाँच प्रकार के आचरण (पंच आचरण): दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य।
  • छः आवश्यक कर्तव्य (षडावश्यक): सामानिक, स्तवन, पूजन, प्रति-क्रमांण, प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग।
  • गुप्ति: शरीर, वाणी और मन की क्रियाओं पर नियंत्रण।

जैन ग्रंथ द्रव्यसंग्रह के अनुसार:

"जो स्वयं दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य, इन पाँचों आचरणों का पालन करते हैं और अपने शिष्यों को भी इनका पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं, वे ही ध्यान के योग्य आचार्य कहलाते हैं।" (52)

1987 में, चंदनाजी पहली जैन महिला बनी जिन्हें आचार्य की उपाधि मिली। यह जैन धर्म में महिलाओं के बढ़ते महत्व को दर्शाता है।

संक्षेप में: जैन धर्म में आचार्य सिर्फ एक पदवी नहीं बल्कि एक आदर्श जीवन का प्रतीक है। वे अपने ज्ञान, तपस्या और त्याग से समाज को सही मार्ग दिखाते हैं।


Āchārya means the Head of an order of ascetics. Some of the famous achāryas are Bhadrabahu, Kundakunda, Samantabhadra, Umaswami, Sthulibhadra.



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