Saṃsāra_(Buddhism)

संसार (बौद्ध धर्म)

Saṃsāra (Buddhism)

(Cycle of repeated birth, mundane existence and dying again)

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संसार: जन्म और मृत्यु का चक्र

संसार, जिसे 'संसारा' भी लिखा जाता है, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के एक अंतहीन चक्र को दर्शाता है। यह चक्र दुःख (दुख), अज्ञानता (अविद्या) और इच्छाओं (तृष्णा) से बंधा हुआ है।

दुःख का चक्र:

संसार को दुःख का चक्र माना जाता है। जन्म लेना, बीमार होना, बूढ़ा होना, मरना, प्रियजनों से बिछड़ना, इच्छाओं का पूरा न होना - ये सभी दुःख के रूप हैं जो जीवन में बार-बार आते हैं।

अज्ञानता और तृष्णा:

संसार में फंसे रहने का कारण अज्ञानता और तृष्णा हैं। अज्ञानता का अर्थ है स्वयं की वास्तविक प्रकृति, कर्म के सिद्धांत और मुक्ति के मार्ग को न समझ पाना। तृष्णा का अर्थ है सांसारिक सुखों, पदार्थों और अनुभवों की लालसा।

कर्म का सिद्धांत:

हमारे कर्म, अर्थात हमारे अच्छे और बुरे कर्म, हमारे भविष्य के जन्मों को निर्धारित करते हैं। अच्छे कर्म हमें सुखद जन्म देते हैं, जबकि बुरे कर्म हमें दुखद जन्मों की ओर ले जाते हैं।

छह लोकों में पुनर्जन्म:

हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुसार, पुनर्जन्म छह लोकों (या योनियों) में से किसी एक में हो सकता है:

  • तीन शुभ लोक:

    • देवलोक: देवताओं का लोक, जहाँ सुख और आनंद की प्रधानता होती है।
    • असुरलोक: दैत्यों का लोक, जहाँ शक्ति और समृद्धि होती है, लेकिन ईर्ष्या और क्रोध भी व्याप्त रहता है।
    • मनुष्य लोक: मनुष्यों का लोक, जहाँ सुख और दुःख दोनों का अनुभव होता है। यह मोक्ष प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त लोक माना जाता है।
  • तीन अशुभ लोक:

    • पशु लोक: जानवरों का लोक, जहाँ जीवन संघर्ष और पीड़ा से भरा होता है।
    • प्रेत लोक: भूखे और प्यासे प्रेतों का लोक, जहाँ दुःख और असंतोष व्याप्त रहता है।
    • नरक लोक: नरक का लोक, जहाँ पापियों को उनके कर्मों के अनुसार दंड दिया जाता है।

मोक्ष: संसार से मुक्ति:

संसार के चक्र से मुक्ति का अर्थ है मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करना। यह तब संभव होता है जब व्यक्ति अज्ञानता और तृष्णा पर विजय प्राप्त कर लेता है और अपनी वास्तविक प्रकृति को जान लेता है।

निर्वाण:

बौद्ध धर्म में, मुक्ति को निर्वाण कहा जाता है, जिसका अर्थ है "बुझ जाना" या "शांत हो जाना"। यह सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति और पूर्ण शांति की स्थिति है। निर्वाण प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को अष्टांगिक मार्ग का पालन करना होता है, जिसमें सही दृष्टि, सही संकल्प, सही वाणी, सही कर्म, सही आजीविका, सही प्रयास, सही स्मृति और सही समाधि शामिल हैं।

संक्षेप में:

संसार जन्म और मृत्यु का एक अंतहीन चक्र है जो दुःख, अज्ञानता और तृष्णा से बंधा हुआ है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को अपनी वास्तविक प्रकृति को जानना होगा और अज्ञानता और तृष्णा पर विजय पानी होगी।


Saṃsāra in Buddhism and Hinduism is the beginningless cycle of repeated birth, mundane existence and dying again. Samsara is considered to be dukkha, suffering, and in general unsatisfactory and painful, perpetuated by desire and avidya (ignorance), and the resulting karma.



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