
गुरु अंगद
Guru Angad
(Second Sikh guru from 1539 to 1552)
Summary
गुरु अंगद: सिख धर्म के दूसरे गुरु
गुरु अंगद सिख धर्म के दस गुरुओं में से दूसरे गुरु थे। उनका जन्म 31 मार्च 1504 को हुआ और 29 मार्च 1552 को उनका निधन हो गया। गुरु नानक, सिख धर्म के संस्थापक, से मिलने के बाद, लेहना ने सिख धर्म अपनाया और कई सालों तक गुरु नानक की सेवा की। गुरु नानक ने लेहना को "अंगद" ("मेरा अपना अंग") नाम दिया और उन्हें सिख धर्म का दूसरा गुरु नियुक्त किया।
1539 में गुरु नानक के निधन के बाद, गुरु अंगद ने सिख परंपरा का नेतृत्व किया। सिख धर्म में उन्हें गुरुमुखी लिपि को अपनाने और इसे औपचारिक रूप देने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने गुरु नानक के भजनों को एकत्र करने की प्रक्रिया शुरू की और अपने खुद के 62 या 63 "सलोक्" का योगदान दिया। उन्होंने अपने बेटे के बजाय अपने शिष्य अमर दास को अपना उत्तराधिकारी और सिख धर्म का तीसरा गुरु चुना।
अधिक विवरण:
- गुरु अंगद का जन्म: लेहना नामक गुरु अंगद का जन्म 31 मार्च 1504 को खटकर कलान, पंजाब में हुआ था।
- गुरु नानक से मिलन: गुरु अंगद ने गुरु नानक से 1504-1506 के बीच मुलाकात की। गुरु नानक ने लेहना को अपना शिष्य बनाया और उन्हें कई सालों तक अपनी सेवा में रखा।
- गुरु का नामकरण: गुरु नानक ने लेहना को "अंगद" का नाम दिया, जिसका अर्थ है "मेरा अपना अंग" या "शरीर का अंग"। यह उनके गुरु प्रतिष्ठा और गुरु नानक के प्रति निष्ठा का प्रतीक था।
- गुरुमुखी लिपि: गुरु अंगद को गुरुमुखी लिपि को अपनाने और उसे औपचारिक रूप देने का श्रेय जाता है। उन्होंने गुरु नानक के भजनों को गुरुमुखी लिपि में लिखना शुरू किया, जिससे सिख धर्म के ग्रंथों को एक मानक रूप दिया गया।
- सिख धर्म का विकास: गुरु अंगद ने गुरु नानक के उपदेशों का प्रचार किया और सिख धर्म को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने खुद के "सलोक्" भी लिखे, जो गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
- उत्तराधिकारी: गुरु अंगद ने अपने बेटे के बजाय अपने शिष्य अमर दास को अपना उत्तराधिकारी और सिख धर्म का तीसरा गुरु चुना। उन्होंने शिष्य की योग्यता और ज्ञान को वंशानुगत उत्तराधिकार से ऊपर रखा।
निष्कर्ष:
गुरु अंगद सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्होंने गुरु नानक की शिक्षाओं का प्रचार किया, सिख धर्म का संगठन किया, और गुरुमुखी लिपि का विकास किया। उनके योगदान ने सिख धर्म को एक अलग और पहचान योग्य धर्म के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।