
सूरदास
Surdas
(Indian writer, poet and singer)
Summary
सूरदास: कृष्ण भक्ति के अमर गायक
सूरदास 16वीं शताब्दी के एक महान भक्त कवि और गायक थे। वे जन्म से ही नेत्रहीन थे। उनकी भक्ति कृष्ण के प्रति अगाध थी और उनकी रचनाएँ इसी प्रेम और समर्पण को दर्शाती हैं। सूरदास मुख्यतः ब्रज भाषा में लिखते थे, परन्तु उनकी कुछ रचनाएँ अवधी सहित मध्यकालीन हिंदी की अन्य बोलियों में भी मिलती हैं।
सूरदास और वल्लभ संप्रदाय
सूरदास के जीवन के बारे में अधिकतर जानकारी वल्लभ संप्रदाय या पुष्टिमार्ग के माध्यम से मिलती है। पुष्टिमार्ग के अनुसार, सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे। गोकुलनाथ और हरिराय द्वारा रचित "चौरासी वैष्णवन की वार्ता" में सूरदास की जीवनी का वर्णन मिलता है। सूरदास और अष्टछाप के अन्य कवियों की रचनाएँ पुष्टिमार्ग के भजन-कीर्तन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हालाँकि, आधुनिक विद्वान सूरदास और वल्लभ संप्रदाय के बीच ऐतिहासिक संबंध को संदिग्ध मानते हैं।
सूरसागर: रचना और महत्व
"सूरसागर" नामक ग्रन्थ पारंपरिक रूप से सूरदास को समर्पित है। हालाँकि, इस ग्रन्थ के कई पदों को बाद के कवियों द्वारा सूरदास के नाम से लिखा गया माना जाता है। वर्तमान स्वरूप में उपलब्ध "सूरसागर" मुख्यतः गोकुल और वृंदावन के बालकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन गोपियों के दृष्टिकोण से करता है।
सूरदास की भक्ति और रचनाएँ: एक विस्तृत दृष्टि
सूरदास की भक्ति भावपूर्ण और सरल थी। उन्होंने कृष्ण को अपने आराध्य, अपने सखा, अपने प्रियतम के रूप में देखा। उनकी रचनाओं में कृष्ण के बाल रूप, उनके लीला-वर्णन, राधा-कृष्ण प्रेम और भक्ति का मार्मिक चित्रण मिलता है। उनकी भाषा सरल, भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी होती थी। सूरदास की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं:
- सूरसागर: कृष्ण लीला का विशाल ग्रन्थ, जिसमें मुख्यतः बाल लीलाओं का वर्णन है
- सूर सारावली: सूरसागर की अपेक्षा छोटा ग्रन्थ, जिसमें कृष्ण के विभिन्न रूपों का वर्णन है
- साहित्य लहरी: राधा-कृष्ण प्रेम का वर्णन
सूरदास भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ थे। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को भाव-विभोर करती हैं और कृष्ण भक्ति का रसपान कराती हैं।