Animals_in_Buddhism

बौद्ध धर्म में पशु

Animals in Buddhism

(Treatment of animals in Buddhism)

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जानवरों के प्रति बौद्ध धर्म का दृष्टिकोण

यह विषय बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने में मदद करता है:

१. मनुष्य और प्रकृति का संबंध: बौद्ध धर्म मानता है कि मनुष्य प्रकृति का एक हिस्सा है, उससे अलग नहीं। यह दृष्टिकोण जानवरों के प्रति करुणा और सम्मान को बढ़ावा देता है।

२. बौद्ध धर्म में मानवतावाद: बौद्ध धर्म में सभी जीवों के प्रति करुणा (करुणा) और अहिंसा (अहिंसा) पर जोर दिया गया है। यह नैतिक फ़र्ज़ सिर्फ़ मनुष्यों तक सीमित नहीं है बल्कि सभी प्राणियों पर लागू होता है।

३. बौद्ध सिद्धांत और व्यवहार में सामंजस्य: बौद्ध धर्म केवल उपदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। जानवरों के प्रति दया और अहिंसा का व्यवहार बौद्ध शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

जानवरों के प्रति बौद्ध दृष्टिकोण के कुछ मुख्य पहलू:

  • पुनर्जन्म: बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार, मनुष्य केवल मनुष्य के रूप में ही नहीं बल्कि अन्य जीवों के रूप में भी जन्म ले सकते हैं। इस मान्यता से सभी जीवों के प्रति सम्मान और करुणा का भाव पैदा होता है।
  • कर्म: बौद्ध धर्म के अनुसार, हर कर्म का फल मिलता है। जानवरों के प्रति क्रूरता और हिंसा के भी बुरे परिणाम भुगतने पड़ते हैं, जबकि दया और अहिंसा से पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • शाकाहार: हालांकि सभी बौद्ध शाकाहारी नहीं होते हैं, लेकिन अहिंसा के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए मांसाहार को त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

संक्षेप में, बौद्ध धर्म में जानवरों को सम्मान और करुणा का पात्र माना जाता है। बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरा संबंध है और सभी जीवों के कल्याण के लिए अहिंसा और करुणा का पालन करना अनिवार्य है।


The position and treatment of animals in Buddhism is important for the light it sheds on Buddhists' perception of their own relation to the natural world, on Buddhist humanitarian concerns in general, and on the relationship between Buddhist theory and Buddhist practice.



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