Madhyamaka

मध्यमक

Madhyamaka

(Buddhist philosophy founded by Nagarjuna)

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माध्यिमक दर्शन: एक विस्तृत परिचय (हिंदी में)

माध्यमिक दर्शन, जिसे शून्यवाद और निःस्वभाववाद भी कहा जाता है, बौद्ध दर्शन और अभ्यास की एक प्रमुख परंपरा है। इसकी स्थापना भारतीय बौद्ध भिक्षु और दार्शनिक नागार्जुन (लगभग 150-250 ईस्वी) ने की थी। माध्यमिक परंपरा का मूल ग्रंथ नागार्जुन द्वारा रचित मूलमध्यमककारिका ("माध्यमिक मार्ग पर मूल छंद") है।

मध्यमिक शब्द का अर्थ "मध्यम मार्ग" या "मध्यता" है। यह दर्शन सभी प्रकार की अतियां और एकांगी दृष्टिकोणों को अस्वीकार करता है। यह न तो अस्तित्ववाद (चीजों के स्थायी अस्तित्व में विश्वास) का समर्थन करता है और न ही अभावावाद (किसी भी चीज़ के अस्तित्व को नकारना) का।

मध्यमिक दर्शन का मूल सिद्धांत शून्यता (emptiness) का है। इसका मतलब यह है कि सभी घटनाएँ (धर्म) स्वभावतः शून्य हैं। उनमें कोई भी ऐसा स्थायी सार या स्वभाव (svabhāva) नहीं है जो उन्हें स्वतंत्र और स्थायी अस्तित्व प्रदान कर सके। यह इसलिए है क्योंकि सभी घटनाएँ अन्य घटनाओं पर निर्भर हैं और एक दूसरे से संबंधित हैं।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि "शून्यता" का अर्थ अभाव या निरपेक्ष शून्य नहीं है। बल्कि, यह इस बात पर जोर देता है कि किसी भी चीज़ का अस्तित्व स्वतंत्र और स्थायी नहीं है। शून्यता ही वास्तविकता है और यह स्वयं भी शून्य है।

चौथी शताब्दी ईस्वी से, मध्यमिक दर्शन का महायान बौद्ध परंपरा के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह तिब्बती बौद्ध धर्म में बौद्ध दर्शन की प्रमुख व्याख्या है और पूर्वी एशियाई बौद्ध विचारों को भी प्रभावित करता है।

संक्षेप में, मध्यमिक दर्शन हमें यह सिखाता है कि:

  • सभी घटनाएँ अनित्य, अस्थायी और परिवर्तनशील हैं।
  • किसी भी चीज़ का स्वतंत्र और स्थायी अस्तित्व नहीं है।
  • शून्यता ही वास्तविकता है, जो स्वयं भी शून्य है।
  • इस शून्यता की प्रत्यक्ष अनुभूति ही मुक्ति का मार्ग है।

यह दर्शन हमें दुनिया को एक नए और गहन तरीके से देखने में मदद करता है, जहाँ हम आसक्ति और दुखों से मुक्त हो सकते हैं।


Mādhyamaka, otherwise known as Śūnyavāda and Niḥsvabhāvavāda, refers to a tradition of Buddhist philosophy and practice founded by the Indian Buddhist monk and philosopher Nāgārjuna. The foundational text of the Mādhyamaka tradition is Nāgārjuna's Mūlamadhyamakakārikā. More broadly, Mādhyamaka also refers to the ultimate nature of phenomena as well as the non-conceptual realization of ultimate reality that is experienced in meditation.



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