
करुणा
Karuṇā
(Sanskrit term translated as compassion or mercy)
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करुणा: एक विस्तृत व्याख्या
"करुणा" एक संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ दया, करुणा या अनुकम्पा होता है। कभी-कभी इसका अर्थ आत्म-करुणा या आध्यात्मिक चाह से भी लिया जाता है। यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और जैन धर्म जैसे भारतीय धर्मों में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अवधारणा है।
करुणा की गहराई:
करुणा केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह एक गहन अनुभूति है जो हमें दूसरों के दुःख को समझने और उसे दूर करने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें स्वार्थ से ऊपर उठाकर दूसरों के प्रति प्रेम, दया और सेवा का भाव जगाती है।
विभिन्न धर्मों में करुणा:
- हिंदू धर्म: हिंदू धर्म में करुणा को एक महत्वपूर्ण गुण माना गया है। भगवान राम और कृष्ण जैसे अवतारों ने करुणा का आदर्श प्रस्तुत किया है।
- बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म में करुणा को चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग का अभिन्न अंग माना गया है। बोधिसत्व करुणा के साक्षात् उदाहरण हैं जो सभी प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयासरत रहते हैं।
- सिख धर्म: सिख धर्म में करुणा को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग माना गया है। गुरु नानक देव जी ने करुणा को सबसे बड़ा धर्म बताया है।
- जैन धर्म: जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोपरि माना गया है और करुणा अहिंसा का ही एक रूप है। जैन धर्म के अनुसार, हमें सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव रखना चाहिए।
निष्कर्ष:
करुणा मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह हमें एक बेहतर इंसान बनने और एक बेहतर समाज के निर्माण में मदद करता है।
Karuṇā is generally translated as compassion or mercy and sometimes as self-compassion or spiritual longing. It is a significant spiritual concept in the Indic religions of Hinduism, Buddhism, Sikhism, and Jainism.