Early_Buddhist_schools

प्रारंभिक बौद्ध स्कूल

Early Buddhist schools

(Early Buddhist monastic schools)

Summary
Info
Image
Detail

Summary

प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदाय (Early Buddhist Schools)

बौद्ध धर्म के इतिहास में, प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदाय वे विभिन्न शाखाएँ हैं जिनमें बौद्ध भिक्षुओं का समूह (संघ) विभाजित हो गया था। ये विभाजन शुरू में विनय (बौद्ध भिक्षुओं के लिए नियमों का संग्रह) में मतभेद के कारण हुए थे, और बाद में सैद्धांतिक मतभेदों और भिक्षु समूहों के भौगोलिक अलगाव के कारण भी हुए।

मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान या उसके बाद, मूल संघ दो मुख्य प्रारंभिक सम्प्रदायों में विभाजित हो गया था:

  • स्थाविर निकाय: यह समूह रूढ़िवादी था और बुद्ध के मूल उपदेशों को यथावत रखने पर जोर देता था।
  • महासंघिक: यह समूह अधिक उदार था और बदलते समय के साथ बौद्ध धर्म में बदलावों का स्वागत करता था।

समय के साथ, ये दोनों प्रारंभिक सम्प्रदाय आगे चलकर और भी छोटे-छोटे सम्प्रदायों में विभाजित हो गए, जैसे कि सर्वस्तिवादी, धर्मगुप्तक, और विभज्यवादी। परंपरागत विवरणों के अनुसार, कुल मिलाकर 18 या 20 प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदाय अस्तित्व में आए।

इन प्रारंभिक सम्प्रदायों द्वारा साझा की जाने वाली ग्रंथ सामग्री को प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथ कहा जाता है। ये ग्रंथ इन सम्प्रदायों के बीच सैद्धांतिक समानताओं और मतभेदों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदायों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:

  • उत्पत्ति: अधिकांश प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदायों का उदय तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पहली शताब्दी ईस्वी के बीच हुआ था।
  • भौगोलिक वितरण: ये सम्प्रदाय पूरे भारत में फैले हुए थे, और बाद में श्रीलंका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य एशिया में भी फैल गए।
  • प्रभाव: प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदायों ने बौद्ध धर्म के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • वर्तमान स्थिति: इनमें से कुछ सम्प्रदाय आज भी अस्तित्व में हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रारंभिक बौद्ध सम्प्रदायों के बीच मतभेद हमेशा स्पष्ट नहीं थे, और कुछ सिद्धांतों और प्रथाओं को विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा साझा किया जाता था।


The early Buddhist schools are those schools into which the Buddhist monastic saṅgha split early in the history of Buddhism. The divisions were originally due to differences in Vinaya and later also due to doctrinal differences and geographical separation of groups of monks. The original saṅgha split into the first early schools during or after the reign of Aśoka. Later, these first early schools were further divided into schools such as the Sarvāstivādins, the Dharmaguptakas, and the Vibhajyavāda, and ended up numbering 18 or 20 schools according to traditional accounts.



...
...
...
...
...
An unhandled error has occurred. Reload 🗙