Buddhism_and_democracy

बौद्ध धर्म और लोकतंत्र

Buddhism and democracy

(History and modern perspectives on relationship between Buddhism and democracy)

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बौद्ध धर्म और लोकतंत्र: एक गहरा रिश्ता (Buddhism and Democracy: A Deep Relationship)

बौद्ध धर्म और लोकतंत्र के बीच का रिश्ता बहुत पुराना है। कुछ विद्वानों का मानना है कि बौद्ध समाज की नींव ही लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर रखी गई थी। हालाँकि इतिहास में कुछ बौद्ध समाजों को सामंती व्यवस्था का उदाहरण माना जाता है, लेकिन किसानों और जमींदारों के बीच का संबंध अक्सर स्वेच्छा से होता था।

आइए इसे विस्तार से समझें:

  • स्वतंत्र सोच: बौद्ध धर्म मुक्त सोच को प्रोत्साहित करता है। यह किसी भी प्रकार के अंधविश्वास या बाहरी दबाव के बिना, तर्क और विवेक के आधार पर फैसले लेने पर जोर देता है। यह सोच लोकतंत्र का भी आधार है, जहाँ नागरिकों को अपनी राय रखने और अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार होता है।

  • स्वायत्तता: बौद्ध समाजों ने हमेशा स्वायत्तता का समर्थन किया है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति और समुदायों को अपने मामलों को स्वयं संचालित करने की आज़ादी होनी चाहिए। यह विकेंद्रीकरण के सिद्धांत के समान है, जो लोकतांत्रिक शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

  • किसानों की स्थिति: सामंती व्यवस्था के विपरीत, जहाँ किसानों को जमींदारों के अधीन रहना पड़ता था, बौद्ध समाजों में किसानों के पास अधिक स्वतंत्रता थी। वे अपनी इच्छा से जमीन खरीद और बेच सकते थे, और उन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाने की आज़ादी थी।

यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सभी बौद्ध समाज पूरी तरह से लोकतांत्रिक नहीं थे। फिर भी, बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्धांतों जैसे समानता, करुणा, और अहिंसा का लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।


The relationship between Buddhism and democracy has a long history with some scholars claiming the very foundations of Buddhist society were democratic. Though some historic Buddhist societies have been categorized as feudalistic, the relationship between peasants and land owners was often voluntary. Free-thinking Buddhist societies supported autonomy; peasants had mobility and could own land themselves.



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