
धर्मयुद्ध (सिख धर्म)
Dharamyudh (Sikhism)
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सिख धर्म में धर्मयुद्ध:
सिख धर्म में धर्मयुद्ध (Gurmukhi: ਧਰਮਯੁਧ), जिसे धरम-युद्ध या धरम युद्ध भी कहा जाता है, एक ऐसा शब्द है जिसका अनुवाद "धार्मिक युद्ध", "धार्मिकता का युद्ध", "धार्मिकता की रक्षा का युद्ध" या "न्याय के लिए युद्ध" के रूप में किया जाता है।
हालांकि सिख धर्म के कुछ मूल सिद्धांत शांति और अहिंसा पर जोर देते हैं, खासकर 1606 में मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा गुरु अर्जुन देव की हत्या से पहले, अगर संघर्ष का समाधान करने के सभी शांतिपूर्ण प्रयास विफल हो जाते हैं, तो सैन्य बल का इस्तेमाल उचित ठहराया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप एक धर्मयुद्ध होता है।
विवरण:
- सिख धर्म में धर्मयुद्ध का विचार, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित "खालसा पंथ" के साथ निकटता से जुड़ा है।
- गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को अपने धर्म और समुदाय की रक्षा के लिए हथियार उठाने की अनुमति दी, जब वे अत्याचार और अन्याय का सामना कर रहे थे।
- धर्मयुद्ध का अर्थ केवल युद्ध नहीं है, बल्कि धार्मिक सिद्धांतों के लिए लड़ाई, न्याय की स्थापना और अधर्म के विरुद्ध लड़ाई है।
- सिख धर्म में, धर्मयुद्ध का संचालन करने का निर्णय केवल एक योग्य और धार्मिक नेता द्वारा ही लिया जा सकता है।
- धर्मयुद्ध केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाता है, जब सभी शांतिपूर्ण प्रयास विफल हो जाते हैं।
उदाहरण:
- सिख इतिहास में, कई धर्मयुद्ध हुए हैं, जिनमें मुगल साम्राज्य के विरुद्ध सिखों का संघर्ष शामिल है।
- सिखों ने अपने धर्म, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े।
- धर्मयुद्ध के विचार ने सिखों को एकजुट होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने में मदद की।
आधुनिक समय में:
- आधुनिक समय में, धर्मयुद्ध का अर्थ केवल युद्ध से अलग है।
- यह अब एक ऐसे संघर्ष को दर्शाता है जो सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के लिए है।
- धर्मयुद्ध का विचार सिख धर्म में अहिंसा और न्याय के मूल्यों को बनाए रखने के लिए एक प्रेरणा के रूप में कार्य करता है।
In Sikhism, dharamyudh, dharam-yudh or dharam yudh is a term which is variously translated as 'religious war', 'war of righteousness', 'war in defence of righteousness', or 'war for justice'. Though some core tenets in the Sikh religion are understood to emphasise peace and nonviolence, especially before the 1606 execution of Guru Arjan by Mughal emperor Jahangir, military force may be justified if all peaceful means to settle a conflict have been exhausted, thus resulting in a dharamyudh.