
जैन स्तूप
Jain stupa
(Type of stupa erected by the Jains for devotional purposes)
Summary
जैन स्तूप
जैन स्तूप, जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा पूजा-अर्चना के लिए निर्मित एक प्रकार का स्तूप होता था। 19वीं शताब्दी में मथुरा के कंकाली टीला नामक स्थान पर खुदाई के दौरान पहली शताब्दी ईसा पूर्व - पहली शताब्दी ईस्वी का एक जैन स्तूप मिला था।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहला जैन स्तूप आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में, जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के काल से पहले बनाया गया था।
यह संभव है कि जैन धर्म के अनुयायियों ने बौद्ध धर्म से स्तूप पूजा को अपनाया हो, लेकिन यह एक विवादास्पद विषय है। हालांकि, जैन स्तूप में एक विशिष्ट बेलनाकार तीन-स्तरीय संरचना होती है, जो समवसरण की याद दिलाती है। समवसरण एक पवित्र स्थान होता है जहाँ जैन तीर्थंकर धर्मोपदेश देते थे। समय के साथ, समवसरण ने जैन धर्म में स्तूप का स्थान ले लिया और पूजा का मुख्य केंद्र बन गया।
जैन अभिलेखों में स्तूप के लिए "थूप" शब्द का प्रयोग किया जाता है।
अतिरिक्त जानकारी:
- जैन स्तूप आमतौर पर ईंटों या पत्थरों से बने होते थे।
- इनमें बुद्ध के अवशेषों के बजाय जैन तीर्थंकरों के अवशेष, पवित्र ग्रंथ या अन्य पवित्र वस्तुएँ रखी जाती थीं।
- स्तूप के चारों ओर परिक्रमा पथ होता था जहाँ श्रद्धालु पूजा करते हुए घूमते थे।
- जैन स्तूप ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति के केंद्र माने जाते थे।