Death_in_Jainism

जैन धर्म में मृत्यु

Death in Jainism

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आत्मा और जड़: जैन धर्म की दृष्टि (Atma aur Jad: Jain Dharm ki Drishti)

यह खंड जैन धर्म के अनुसार आत्मा और जड़ की प्रकृति को समझाता है:

१. आत्मा (Atma): जैन धर्म के अनुसार, आत्मा शाश्वत है और उसकी कभी मृत्यु नहीं होती। यह अविनाशी और अमर है।

२. जड़ (Jad/Pudgala): जैन दर्शन में 'तत्त्वार्थ सूत्र', जो जैन सिद्धांतों का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, के अनुसार जड़ (पदार्थ) का कार्य जीवों को सुख, दुख, जीवन और मृत्यु प्रदान करना है।

विस्तार (Detail):

  • आत्मा: जैन धर्म में आत्मा को चेतन और जानकार माना जाता है। यह शरीर से अलग एक स्वतंत्र सत्ता है। शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा अमर है। मोक्ष प्राप्ति पर आत्मा कर्म बंधन से मुक्त हो जाती है और सिद्ध रूप में विराजमान हो जाती है।

  • जड़: जड़ में वे सभी पदार्थ सम्मिलित हैं जो अचेतन हैं। पत्थर, पानी, हवा, अग्नि इत्यादि सभी जड़ के उदाहरण हैं। जीवों के शरीर भी जड़ से ही बनते हैं। जीव के कर्मों के अनुसार ही जड़, सुख या दुःख का कारण बनती है।

सारांश:

जैन धर्म में आत्मा और जड़ को दो अलग-अलग तत्व माना गया है। आत्मा अमर है और उसका लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है, जबकि जड़ आत्मा को सुख-दुःख के बंधन में बाँधने का काम करती है।


According to Jainism, Ātman (soul) is eternal and never dies. According to Tattvartha Sutra which is a compendium of Jain principles, the function of matter (pudgala) is to contribute to pleasure, suffering, life and death of living beings.



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