
अचौर्य
Achourya
(Non-stealing, a virtue in Indian religions)
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अचौर्य (Asteya): चोरी न करना
अचौर्य या अस्तेय संस्कृत शब्द हैं जिनका अर्थ है "चोरी न करना"। यह जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण गुण है और हिंदू धर्म में भी इसका पालन किया जाता है। अस्तेय का अभ्यास करने का अर्थ है कि व्यक्ति को न तो चोरी करनी चाहिए और न ही किसी और की संपत्ति को चुराने का इरादा रखना चाहिए, चाहे वह कर्म से हो, वाणी से हो या मन से हो।
अस्तेय का विस्तृत अर्थ:
- कर्म से अस्तेय: किसी भी वस्तु को बिना अनुमति के लेना, किसी और की वस्तु को नुकसान पहुंचाना, धोखा देकर धन अर्जित करना, जालसाजी करना आदि।
- वाणी से अस्तेय: झूठ बोलकर, धोखा देकर, चुगली करके या किसी और को उकसाकर किसी को नुकसान पहुंचाना।
- मन से अस्तेय: किसी और की वस्तु की लालसा करना, ईर्ष्या करना, चोरी करने के बारे में सोचना आदि।
महत्व:
- अस्तेय का पालन करने से व्यक्ति का मन शुद्ध रहता है और उसे मानसिक शांति मिलती है।
- यह समाज में विश्वास और सद्भावना को बढ़ावा देता है।
- यह व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण और अनुशासन सिखाता है।
अन्य धर्मों में:
अस्तेय का सिद्धांत केवल हिंदू धर्म और जैन धर्म तक ही सीमित नहीं है। यह बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम सहित कई अन्य धर्मों में भी एक महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य माना जाता है।
निष्कर्ष:
अस्तेय एक महत्वपूर्ण नैतिक गुण है जो व्यक्ति और समाज दोनों के लिए आवश्यक है। यह हमें ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और संयम का जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
Achourya or Asteya is the Sanskrit term for "non-stealing". It is a virtue in Jainism. The practice of asteya demands that one must not steal, nor have the intent to steal, another's property through action, speech, and thoughts.