
बुद्ध की प्रकृति
Buddha-nature
(Buddhist philosophical concept)
Summary
बुद्ध प्रकृति: हर प्राणी में छिपी बुद्ध बनने की क्षमता (Buddha-Nature: The Potential for Buddhahood within All Beings)
बौद्ध दर्शन में, बुद्ध-प्रकृति का अर्थ है सभी प्राणियों में बुद्ध बनने की क्षमता या यह तथ्य कि सभी प्राणियों के भीतर पहले से ही एक शुद्ध बुद्ध-तत्व मौजूद है। "बुद्ध-प्रकृति" कई संबंधित महायान बौद्ध शब्दों का सामान्य अंग्रेजी अनुवाद है, जिनमें से सबसे प्रमुख हैं तथागतगर्भ और बुद्धधातु, लेकिन सुगतगर्भ और बुद्धगर्भ भी इस्तेमाल होते हैं।
तथागतगर्भ का अर्थ "गर्भ" या "भ्रूण" (गर्भ) "तथागत" (जो इस प्रकार गये हैं) का हो सकता है, और इसका अर्थ "तथागत को समाहित करना" भी हो सकता है। बुद्धधातु का अर्थ "बुद्ध-तत्व", "बुद्ध-लोक" या "बुद्ध-आधार" हो सकता है।
विभिन्न अर्थ और व्याख्याएँ (Diverse Meanings and Interpretations)
भारतीय और बाद में पूर्वी एशियाई और तिब्बती बौद्ध साहित्य में बुद्ध-प्रकृति के कई (कभी-कभी परस्पर विरोधी) अर्थ हैं। मोटे तौर पर, यह इस विश्वास को संदर्भित करता है कि चमकदार मन, "मन की स्वाभाविक और वास्तविक अवस्था," जो कि क्लेशों से अशुद्ध (विसुद्धि) मन है, स्वाभाविक रूप से हर प्राणी में मौजूद है, और शाश्वत और अपरिवर्तनशील है। यह तब प्रकट होगा जब इसे अशुद्धियों से मुक्त किया जाएगा, अर्थात, जब मन की प्रकृति को उसके वास्तविक रूप में पहचाना जाएगा।
प्रमुख सूत्र और ग्रंथ (Key Sutras and Treatises)
महायान महापरिनिर्वाण सूत्र (2nd century CE): इस सूत्र ने, जिसका इन शिक्षाओं के चीनी स्वागत में बहुत प्रभाव था, तथागतगर्भ की अवधारणा को बुद्धधातु से जोड़ा। बुद्धधातु शब्द मूल रूप से बुद्ध अवशेषों को संदर्भित करता था। महापरिनिर्वाण में, इसका उपयोग तथागतगर्भ की अवधारणा के स्थान पर किया जाने लगा, जिससे बुद्ध के भौतिक अवशेषों की पूजा को आंतरिक बुद्ध की पूजा में बदल दिया गया, जो मुक्ति का एक सिद्धांत है।
रत्नगोत्रविभाग: तिब्बती बौद्ध धर्म में बुद्ध-प्रकृति के विचारों को समझने के लिए यह भारतीय ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण है।
बुद्ध-प्रकृति, शून्यता और आलयविज्ञान (Buddha-Nature, Emptiness, and Alayavijnana)
आदिम या अशुद्ध मन, तथागतगर्भ, को अक्सर शून्यता के साथ समान किया जाता है; आलयविज्ञान ("भंडार-चेतना", एक योगाचार अवधारणा) के साथ; और सभी धर्मों के अंतर्संबंध के साथ (हुयान जैसी पूर्वी एशियाई परंपराओं में)।
पूर्वी एशियाई और तिब्बती बौद्ध धर्म में महत्व (Significance in East Asian and Tibetan Buddhism)
बुद्ध प्रकृति के विचार पूर्वी एशियाई बौद्ध धर्म के केंद्र में हैं, जो महापरिनिर्वाण जैसे प्रमुख बुद्ध-प्रकृति स्रोतों पर निर्भर करता है। तिब्बती बौद्ध धर्म में, बुद्ध-प्रकृति के विचार भी महत्वपूर्ण हैं, और अक्सर बुद्ध-प्रकृति पर महत्वपूर्ण भारतीय ग्रंथ, रत्नगोत्रविभाग के माध्यम से उनका अध्ययन किया जाता है।