
मिथिला मध्य परिक्रमा
Mithila Madhya Parikrama
(Holy path of Central Mithila)
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मिथिला मध्य परिक्रमा: एक विस्तृत विवरण
मिथिला मध्य परिक्रमा, प्राचीन मिथिला के केंद्रीय भाग की एक वार्षिक धार्मिक यात्रा है। यह यात्रा हर साल तीन बार आयोजित की जाती थी: कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर), फाल्गुन (फरवरी-मार्च) और बैसाख (अप्रैल-मई) के महीनों में। हालांकि, आजकल केवल फाल्गुन माह में होने वाली यात्रा प्रसिद्ध है।
यह यात्रा प्राचीन मिथिला के मध्य भाग का एक वृत्ताकार मार्ग तय करती है जो लगभग 128 किलोमीटर लंबा होता है। इस यात्रा का उल्लेख 18वीं शताब्दी में रचित महाकाव्य "मिथिला माहात्म्य" में मिलता है।
आइए अब इस यात्रा के बारे में थोड़ा विस्तार से जानें:
- महत्व: मिथिला मध्य परिक्रमा को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह यात्रा लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से जोड़ती है और उन्हें मिथिला की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं से अवगत कराती है।
- मार्ग: यह यात्रा विभिन्न धार्मिक स्थलों से होकर गुजरती है, जहाँ श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। इन स्थलों में प्रमुख हैं:
- जानकी स्थान (सीतामढ़ी): माता सीता का जन्मस्थान
- कल्याणेश्वर महादेव मंदिर (फुलहर): भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर
- उच्चाथ (दरभंगा): भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर
- मधुबनी: मिथिला पेंटिंग के लिए प्रसिद्ध
- अनुष्ठान: यात्रा के दौरान श्रद्धालु पैदल चलते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। वे रास्ते में पड़ने वाले गांवों में लोगों से भोजन और आश्रय प्राप्त करते हैं।
मिथिला मध्य परिक्रमा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि सांस्कृतिक समन्वय और भाईचारे का प्रतीक भी है।
Mithila Madhya Parikrama is an annual periodic journey of the central part of the ancient Mithila. It is held every year between the months of Kartik (October–November), Falgun (February–March) and Baishakh (April–May). But nowadays only Falgun (February–March) journey is famous. It is a circular journey of the central part of the Ancient Mithila. It covers a distance of 128 km circular path. It is mentioned in the epic Mithila Mahatmya which was composed in the 18th century.