Six_Paths

छह रास्ते

Six Paths

(Concept in Buddhist cosmology)

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छह लोकों का विस्तृत विवरण (The Six Paths in Detail):

बौद्ध धर्म के अनुसार, मृत्यु के बाद सभी जीवों को उनके कर्मों के आधार पर छह लोकों में से एक में पुनर्जन्म मिलता है। इन लोकों को "भवचक्र" यानि "अस्तित्व का पहिया" में दर्शाया गया है।

ये छह लोक हैं:

  1. देवलोक (Deva): यह देवताओं का लोक है जहाँ सुख और आनंद की प्रधानता होती है। पिछले जन्मों में पुण्य कर्म करने वाले जीवों को इस लोक में जन्म मिलता है।

    • विस्तार: देवलोक में निवास करने वाले देवताओं का जीवनकाल मनुष्यों की तुलना में बहुत लंबा होता है। उन्हें दिव्य शक्तियाँ प्राप्त होती हैं और वे सभी प्रकार के भौतिक सुखों का आनंद लेते हैं। हालाँकि, देवताओं का जीवन भी अनित्य है और अंततः उन्हें भी पुनर्जन्म लेना पड़ता है।
  2. असुर लोक (Asura): यह असुरों का लोक है जहाँ ईर्ष्या, क्रोध और युद्ध का वातावरण रहता है। असुरों में शक्ति और समृद्धि तो होती है परन्तु संतुष्टि का अभाव रहता है।

    • विस्तार: असुर अक्सर देवताओं से ईर्ष्या करते हैं और उनसे युद्ध करते रहते हैं। वे शक्तिशाली और दीर्घायु तो होते हैं, लेकिन उनका जीवन निरंतर संघर्ष और असंतोष से भरा रहता है।
  3. मनुष्य लोक (Manushya): यह मनुष्यों का लोक है जहाँ सुख और दुःख दोनों का अनुभव होता है। यह लोक आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

    • विस्तार: मनुष्यों को बुद्धि और विवेक का वरदान प्राप्त है, जिसके माध्यम से वे अपने कर्मों को समझ सकते हैं और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयास कर सकते हैं।
  4. तिर्यंच लोक (Tiryagyoni): यह जानवरों का लोक है जहाँ अज्ञानता और भय का वातावरण होता है। इस लोक में जन्म लेने वाले जीवों को भोजन, सुरक्षा और अन्य मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

    • विस्तार: पशुओं में विवेक और तर्कशक्ति का अभाव होता है। वे अपनी प्रवृत्ति और इंद्रियों के अधीन रहते हैं।
  5. प्रेत लोक (Preta): यह भूखे प्रेतों का लोक है जहाँ तीव्र भूख और प्यास की पीड़ा होती है। इस लोक में जन्म लेने वाले जीवों को कभी तृप्ति नहीं मिलती और वे हमेशा भोजन और पानी की तलाश में भटकते रहते हैं।

    • विस्तार: प्रेतों का शरीर कुरूप और भयावह होता है। उन्हें खाने-पीने की तीव्र इच्छा होती है, लेकिन वे कुछ भी खा या पी नहीं पाते।
  6. नर्क लोक (Naraka): यह नरक का लोक है जहाँ अत्यधिक पीड़ा और यातना का अनुभव होता है। गंभीर पाप कर्म करने वाले जीवों को इस लोक में जन्म मिलता है।

    • विस्तार: नर्क में अनेक प्रकार की यातनाएँ दी जाती हैं। यह दुःख और पीड़ा का स्थान है जहाँ जीवों को उनके बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ता है।

तीन शुभ गतियाँ और तीन अशुभ गतियाँ:

पहले तीन लोक - देवलोक, असुर लोक और मनुष्य लोक - "तीन शुभ गतियाँ" (कुशल गति) कहलाते हैं, जहाँ जीवों को पुण्य कर्मों के फलस्वरूप सुख और आनंद का अनुभव होता है। अंतिम तीन लोक - तिर्यंच लोक, प्रेत लोक और नर्क लोक - "तीन अशुभ गतियाँ" (अकुशल गति) कहलाते हैं, जहाँ जीवों को बुरे कर्मों के फलस्वरूप दुःख और पीड़ा का अनुभव होता है।

कर्म का प्रभाव:

कर्म - शारीरिक, वाचिक या मानसिक - ही पुनर्जन्म का कारण बनता है। तीन मुख्य दोष - लोभ, द्वेष और मोह - कर्म बंधन का कारण बनते हैं। इनमें से अज्ञानता (अविद्या) को सबसे बड़ा दोष माना जाता है, जो मनुष्य को सत्य से दूर रखता है और उसे दुःख के चक्र में फंसाए रखता है।

निष्कर्ष:

छह लोकों की अवधारणा बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांतों को समझाने में मदद करता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारे कर्मों के परिणाम होते हैं और हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम दुःख के चक्र से मुक्त हो सकें।


The Six Paths in Buddhist cosmology are the six worlds where sentient beings are reincarnated based on their karma, which is linked to their actions in previous lives. These paths are depicted in the Bhavacakra. The six paths are:the world of gods or celestial beings (deva) ; the world of warlike demigods (asura) ; the world of human beings (manushya) ; the world of animals (tiryagyoni) ; the world of hungry ghosts (preta) ; the world of Hell (naraka).



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