Jain_cosmology

जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान

Jain cosmology

(Description of the universe in Jain texts)

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जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान: सरल हिंदी में

जैन धर्म में ब्रह्माण्ड विज्ञान, ब्रह्माण्ड (लोक) के आकार, उसके काम करने के तरीके और उसके घटकों (जैसे जीवित प्राणी, पदार्थ, स्थान, समय आदि) का वर्णन करता है। जैन धर्म के अनुसार, ब्रह्माण्ड एक अनादि और अनंत सत्ता है, जिसका न तो कोई आरंभ है और न ही अंत।

जैन ग्रंथ ब्रह्माण्ड के आकार का वर्णन एक ऐसे पुरुष के समान करते हैं जो टाँगें फैलाए और हाथ अपनी कमर पर रखे हुए खड़ा है। इस ब्रह्माण्ड का आकार ऊपर से चौड़ा, बीच में संकरा और नीचे फिर से चौड़ा बताया गया है।

आइए इसे और विस्तार से समझते हैं:

  • अनादि और अनंत: जैन धर्म में ब्रह्माण्ड को न तो किसी ने बनाया है और न ही इसका कभी अंत होगा। यह हमेशा से अस्तित्व में रहा है और हमेशा रहेगा।
  • पुरुष जैसा आकार: यह एक उपमा है जिससे ब्रह्माण्ड के आकार को समझाया जाता है। जैसे एक पुरुष टाँगें फैलाए और हाथ कमर पर रखे खड़ा होता है, उसी प्रकार ब्रह्माण्ड भी ऊपर और नीचे चौड़ा और बीच में संकरा है।
  • तीन भाग: जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, ब्रह्माण्ड तीन भागों में विभाजित है:
    • उर्ध्व लोक: यह ब्रह्माण्ड का ऊपरी भाग है जहाँ देवताओं का निवास है।
    • मध्य लोक: यह ब्रह्माण्ड का मध्य भाग है जहाँ मनुष्य और अन्य प्राणी रहते हैं।
    • अधोलोक: यह ब्रह्माण्ड का निचला भाग है जहाँ नरक और नारकीय प्राणी स्थित हैं।

यह जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान का एक सामान्य परिचय है। इस विषय में और अधिक जानने के लिए आप जैन ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हैं।


Jain cosmology is the description of the shape and functioning of the Universe (loka) and its constituents according to Jainism. Jain cosmology considers the universe as an uncreated entity that has existed since infinity with neither beginning nor end. Jain texts describe the shape of the universe as similar to a man standing with legs apart and arms resting on his waist. This Universe, according to Jainism, is broad at the top, narrow at the middle and once again becomes broad at the bottom.



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