Nirgun_and_Sargun

निर्गुण और सर्गुण

Nirgun and Sargun

(Philosophical concept in Sikhism)

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निर्गुण और सर्गुन: ईश्वर की दो परस्पर संबंधित प्रकृतियाँ

सिख धर्म में, "निर्गुण" और "सर्गुन" दो शब्द हैं जो ईश्वर की अपरिभाषित (निर्गुण) और प्रकट (सर्गुन) प्रकृति को दर्शाते हैं।

निर्गुण ईश्वर:

  • ईश्वर के इस स्वरूप को "निर्गुण" कहा जाता है क्योंकि यह किसी भी गुण, स्वरूप या रूप से परे है।
  • यह निराकार, अनादि, अजर, अमर, और सर्वव्यापी है।
  • यह शब्द "निर्" (बिना) और "गुण" (गुण) से बना है, जिसका अर्थ है "बिना गुणों वाला"।
  • निर्गुण ईश्वर की कल्पना करना मुश्किल है क्योंकि यह मानवीय समझ से परे है।

सर्गुन ईश्वर:

  • यह ईश्वर का प्रकट रूप है, जो दुनिया में अपना प्रभाव डालता है।
  • सर्गुन ईश्वर को उन गुणों और कार्यों के माध्यम से जाना जाता है जो ब्रह्मांड में प्रकट होते हैं।
  • यह शब्द "सरग" (सृष्टि) और "गुण" (गुण) से बना है, जिसका अर्थ है "सृष्टि के गुणों वाला"।
  • सर्गुन ईश्वर को विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में भी चित्रित किया जाता है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह केवल ईश्वर की प्रकट प्रकृति का एक रूप है।

एकता का सिद्धांत:

सिख धर्म में, "निर्गुण" और "सर्गुन" दोनों ही ईश्वर की एकता (एक ओंकार) का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • निर्गुण और सर्गुन दो विपरीत अवधारणाएं नहीं हैं, बल्कि ईश्वर के दो पहलू हैं।
  • सिख धर्म का मानना है कि ईश्वर सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, और सर्वज्ञ है, और वह दोनों ही रूपों (निर्गुण और सर्गुन) में मौजूद है।

उदाहरण:

  • "हे खुद ही निराकार है, और भी रूपवान है। एक भगवान बिना गुणों वाला है, और भी गुणों वाला है।" - यह उद्धरण सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, श्री गुरु ग्रंथ साहिब से लिया गया है।

निर्गुण और सर्गुन ईश्वर की समझ सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को समझने में महत्वपूर्ण है। यह हमें ईश्वर की एकता और उसकी विविधता दोनों को स्वीकार करने का मार्गदर्शन करता है।


Nirgun and Sargun is terminology used within Sikhism to refer to the ineffable (nirgun) and the manifest (sargun) nature of God. There is no dichotomy in the nirgun and sargun nature of God, as there only One."He Himself is formless, and also formed; the One Lord is without attributes, and also with attributes."



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