Prostration_(Buddhism)

साष्टांग प्रणाम (बौद्ध धर्म)

Prostration (Buddhism)

(Practice in Buddhism)

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साष्टांग प्रणाम: बौद्ध धर्म में श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक

साष्टांग प्रणाम (पाली: पणिपात, संस्कृत: नमस्कार, चीनी: 禮拜, lǐbài, जापानी: रैहाई) बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण शारीरिक क्रिया है जो त्रिरत्न (बुद्ध, उनके धम्म और संघ) और अन्य पूजनीय वस्तुओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए की जाती है।

यह क्रिया शरीर, मन और वाणी से पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।

साष्टांग प्रणाम कैसे करें?

साष्टांग प्रणाम आठ अंगों से किया जाता है, इसलिए इसे 'अष्टांग' भी कहते हैं:

  1. दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर, ह्रदय के सामने रखें।
  2. माथा हथेलियों के बीच रखें।
  3. धीरे-धीरे झुकते हुए, पहले दोनों घुटनों को, फिर दोनों हाथों को और अंत में माथे को जमीन पर स्पर्श करें।
  4. कुछ देर इसी अवस्था में रुकें।
  5. धीरे-धीरे ऊपर उठें, पहले माथा, फिर हाथ और अंत में घुटने उठाएं।

साष्टांग प्रणाम के लाभ:

बौद्ध धर्म में साष्टांग प्रणाम को न केवल एक शारीरिक क्रिया बल्कि एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में देखा जाता है। यह अभ्यास अनेक लाभ प्रदान करता है, जैसे:

  • समर्पण और सम्मान: यह क्रिया त्रिरत्न के प्रति पूर्ण समर्पण और गहरे सम्मान को दर्शाती है।
  • अहंकार का नाश: साष्टांग प्रणाम करने से अहंकार और गर्व जैसे दोषों का नाश होता है।
  • मन की शुद्धि: यह क्रिया मन को शांत और एकाग्र बनाती है, जिससे मानसिक अशुद्धियाँ दूर होती हैं।
  • ध्यान के लिए तैयारी: साष्टांग प्रणाम ध्यान के लिए मन को तैयार करता है।
  • पुण्य संचय: यह क्रिया पुण्य संचय का एक साधन है, जो आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।

पश्चिमी बौद्ध धर्म में साष्टांग प्रणाम:

पश्चिमी देशों में बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ, साष्टांग प्रणाम को भी अपनाया गया है। कुछ बौद्ध गुरु इसे एक स्वतंत्र अभ्यास के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे ध्यान के लिए सहायक मानते हैं।

कुल मिलाकर, साष्टांग प्रणाम बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण और लाभदायक अभ्यास है जो शारीरिक क्रिया के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।


A prostration is a gesture used in Buddhist practice to show reverence to the Triple Gem and other objects of veneration.



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