
अभिज्ञ
Abhijñā
(Supernormal knowledge in Buddhism)
Summary
अभिज्ञा: बौद्ध धर्म में उच्च ज्ञान
अभिज्ञा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "प्रत्यक्ष ज्ञान", "उच्च ज्ञान" या "अलौकिक ज्ञान"। बौद्ध धर्म में, यह विशेष ज्ञान सदाचारी जीवन और ध्यान के माध्यम से प्राप्त होता है। चार ध्यान (झान) या ध्यान अवशोषण की प्राप्ति को इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए पूर्व शर्त माना जाता है।
अभिज्ञा के प्रकार:
अभिज्ञा को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
१. लौकिक अभिज्ञा: इसमें ऐसी असाधारण क्षमताएं शामिल हैं जो इंद्रियों की सीमा से परे हैं, जैसे:
- पूर्व जन्मों का ज्ञान (दिव्य दृष्टि): यह क्षमता व्यक्ति को अपने पिछले जन्मों को देखने और याद रखने की अनुमति देती है।
- दूसरों के मन को पढ़ने की क्षमता (पैरासाइकोलॉजी): यह क्षमता व्यक्ति को दूसरों के विचारों और भावनाओं को समझने की अनुमति देती है।
- अलौकिक शक्तियाँ: इसमें उड़ान भरना, दीवारों के आर-पार देखना, टेलीपोर्टेशन, और अदृश्य होना जैसी क्षमताएं शामिल हैं।
२. लौकिकातीत अभिज्ञा: यह सबसे महत्वपूर्ण अभिज्ञा है और यह सभी मानसिक दोषों (आसव) के नाश को संदर्भित करता है। यह ज्ञान व्यक्ति को दुखों से मुक्ति (निर्वाण) प्राप्त करने में मदद करता है।
अभिज्ञा का महत्व:
बौद्ध धर्म में, अभिज्ञा को साध्य नहीं, बल्कि साधन माना जाता है। इसका उद्देश्य अहंकार को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि दुखों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करना है। अभिज्ञा प्राप्त करने का अंतिम लक्ष्य सभी प्राणियों के कल्याण के लिए कार्य करना है।
ध्यान दें:
- अभिज्ञा प्राप्त करना आसान नहीं है। यह दीर्घकालिक ध्यान और नैतिक आचरण का फल है।
- अभिज्ञा का दुरुपयोग संभव है, इसलिए इसका उपयोग सावधानी और नैतिकता के साथ करना चाहिए।